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जैन मुनियों के नामान्त पद या नन्दियाँ
स्थित गीतार्थो को आज्ञा देते या वासक्षेप प्रेषण करते तब अन्य
भी दीक्षा दे सकते थे । नवदीक्षित मुनियों का नामकरण गच्छनायक आचार्य द्वारा स्थापित नंदी (नामान्त पद) के अनुसार ही होता था। - उपरिवर्णित खरतगच्छ की चौरासी नन्दियों में सर्वाधिक नन्दियों की स्थापना अकबर प्रतिबोधक युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरिजी महाराजने की थी । उनके द्वारा स्थापित ४४ नन्दियों की सूची हमने अपने 'युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरि' ग्रन्थ के पृ. २५९-२६१ में प्रकाशित की है । यह सूची हमें उनके दो विहारपत्रों में जिसमें संवतानुक्रम से चातुर्मास और विशिष्ट घटनाओं के संक्षिप्त उल्लेख सहित उपलब्ध हुई थी। दीक्षा समय एक साथ जितने भी मुनियों की दीक्षा हो, उन सब का नामान्त पद एक साथ ही रखा जाय, यह परिपाटी बहुत ही महत्त्वपूर्ण है । इतः पूर्व यह अनिवार्य नहीं रहा होगा । इस महत्त्वपूर्ण प्रथा से उस समय के अधिकांश मुनियों की दीक्षा का अनुक्रम नन्दी अनुक्रम से प्राप्त हो जाने से हमें तत्कालीन विद्वानों व शिष्यों का इस वैज्ञानिक पद्धति से सम्पादन करने में बडी सुविधा हो गई थी। जैसे गुणविनय और समयसुन्दर दोनों समकालीन मूर्धन्य विद्वान थे, पर दीक्षापर्याय में कौन छोटा-बडा था ? यह जानने के लिए नन्दी अनुक्रम का सहारा परम उपयोगी सिद्ध हुआ । इसके अनुसार हम कह सकते हैं कि गुणविनय की दीक्षा. प्रथम हुई थी, क्योंकि उनकी विनयनन्दी का. क्रमांक ८ वाँ है ओर सुन्दरनन्दी का क्रमांक २. वाँ है।
उपयुक्त नन्दी प्रथा से आकृष्ट होकर हमने विकीर्ण पत्रों में, पृष्ठे-टिप्पणिका, हर्ष-टिप्पणिका आदि में इसकी विशेष
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