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________________ थोड़ा-बहुत दबा देती । लेकिन वह फिर जोर पकड़ लेता । साथ-साथ राष्ट्रीय शिक्षा की प्रगति में भी वृद्धि हुई। गुजरात विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ, जामिया मिलिया इस्लामिया, तिलक विद्यापीठ और मद्रास के पास ऐनी बेसेंट का विश्वविद्यालय, मालवीय जी का काशी विद्यापीठ, इस प्रकार स्वराज आंदोलन के साथ-साथ युवकों की पढ़ाई आगे बढ़ी। इन विद्यापीठों में पढ़ने को अवसर मिलता, इसके अतिरिक्त दुगुना अवसर कारावास में पढ़ने का मिलता । एक बार पाठशाला में पढ़ाई चल रही थी । बापूजी के पास चिट्ठी आई कि दो विद्यार्थियों को मामा साहब फड़के के पास गोधरा में भंगियों के बच्चों को पढ़ाने की मदद के लिए भेजने की जरूरत है । किसे भेजा जाय, यह चर्चा चली । विचार-विमर्श के बाद दो नाम चुने गये, उनमें एक नाम मेरा भी था । कम-से-कम चार महीने अपनी पढ़ाई बिल्कुल छोड़ देने की बात थी और मामा साहब के साथ भंगियों के घरों में बच्चों को पढ़ाने, खेल खिलाने आदि का कार्यक्रम वहां करना था । मेहतरों को पढ़ाने जाने का अनुमोदन मेरे माता-पिता, काका-काकी, से मिला । मैं जाने को तत्पर हुआ, लेकिन पैर उठ नहीं रहे थे। दोपहर का भोजन करके मैं काकास।हेब के घर गया । वह अपने रसोईघर में रसोई बनाने में व्यस्त थे । थोड़ी देर चुपचाप उनके पास बैठा रहा, फिर धीरे-से पूछा, "काकासाहेब जब मेरी पढ़ाई अधूरी है तब मुझे मामासाहब के पास मदद के लिए क्यों भेजते हैं ? वहां बच्चों को पढ़ाना है। मैं अधकचरा उनको कैसे पढ़ाऊंगा ?" अपना रुख थोड़ा सख्त करके उन्होंने पूछा, "तू एक से सौ तक गिनती जानता है या नहीं ?" मैंने कहा, "जी । जानता हूं। उसमें भूल नहीं होगी ।" "अ से ह तक लिखना आता है ?" काकासाहेब का अगला प्रश्न था । मैंने 'हां' में सिर हिलाया और मन ही मन हंसा । "तो बस, जितना तू जानता है, उतना मेहतरों के घर में छोटे-बड़े बच्चों को सिखाना। फिर आगे काम न चले तब हम लोग तेरी मदद करेंगे ।" इसके बाद कुछ कहने का अवसर नहीं था। मैं गोधरा पहुंच गया । सप्ताह भर बाद गोधरा में मामासाहब फड़के के पास साबरमती सत्याग्रह आश्रम की राष्ट्रीयशाला के आचार्य का पत्र पहुंचा, जिसमें पूछा गया था, "यहां से भेजे विद्यार्थी कुछ उपयोग में आ रहे हैं ? प्रभुदास को कड़वा तो लगता होगा। धीरे-धीरे अनुकूल होता जायगा। यह तो मायका छोड़कर ससुराल जाने की सी बात है। थोड़े दिन में सध जायगी। " उस सबका स्मरण करता हूं तो बड़ी कृतार्थता अनुभव होती है । काकासाहेब ने मेरे जीवन को एक नई दिशा दी, जिसके लिए मैं आज भी उनका कृतज्ञ हूं | O ऐसे हैं काकासाहेब इस्माईल भाई नागोरी 00 काकासाहेब को फूल बहुत ही प्यारे लगते हैं । सुवासित पुष्प तो विशेष पसंद हैं। गुलाब, चमेली, मोगरा, चंपा, सुगंधित पारस, पारिजात, चुनी हुई सेवंती आदि देखने की दावत यदि दी जाय तो वह प्रसन्नता के साथ ८४ / समन्वय के साधक
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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