SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मैं प्रसन्न हो उठा और १६ अगस्त, १९५३ को मैंने पिछडे वर्ग आयोग में रिसर्च अधिकारी के पद का कार्य प्रारम्भ कर दिया। यह था मेरा काकासाहेब के सम्पर्क में आने का पहला अवसर। पिछड़े वर्ग आयोग के कार्य में मैं दत्तचित्त होकर लग गया। कमीशन के अन्य सदस्यों के साथ भी सम्पर्क हुआ। देश के चारों वर्णों यानी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र से उत्पन्न हजारों जातियों का उद्गम, उनकी सामाजिक और सांस्कृतिक इतिहास शोध का कार्य हमारे जिम्मे था, क्योंकि इस आधार पर कमीशन को अपना निर्णय भारत सरकार को देना था कि कौन-सी जाति या जनजातियों को अनुसूचित जाति या जनजातियों में रक्खा जाय। कमीशन को पिछडे वर्ग के लिए एक कसोटी भी निर्धारित करनी थी, जो यथासम्भव उपयोगी हो और जिसके आधार पर किसी भी जाति या जनजाति को किसी वर्ग विशेष में रक्खा जा सके। मेरा काम जनगणना की पुरानी रिपोर्टों को पढ़ने के साथ-साथ अन्य साहित्य को पढ़कर जातियों के नामों को तथा उनके इतिहास को खोजना था। इस दौरान काकासाहेब के साथ रहकर उनकी बातों को सुनता तथा समझने की चेष्टा करता। कमीशन के इस कार्य के सम्बन्ध में काकासाहेब कमीशन के अन्य सदस्यों के साथ सारे देश में घूम-घूमकर विभिन्न जातियों के लोगों से मिलकर जानकारी प्राप्त करते थे। मैं भी काकासाहेब के साथ कई राज्यों में घूमा और छोटे-छोटे गांवों में जाकर हमारे देश की गरीब जनता और जातियां किस तरह की अवस्था में किसकिस कोने में रहती हैं, उनके खान-पान क्या हैं, उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति क्या है, उनको क्या-क्या साधन उपलब्ध हैं, आदि की जानकारी खूब मिलती थी। काकासाहेब के भाषण सुनता था और उनके भाषणों में देश के इन पिछड़े हुए सामाजिक दृष्टि से सताये हुए और अज्ञान और अन्धकार में डूबे हुए करोड़ों लोगों के प्रति गहरी संवेदना मैं पाता था। उससे मेरे मन पर गहरा असर हुआ। लगता था कि देश के इन कोटि-कोटि निरीह लोगों को कब ऐसा अवसर मिलेगा कि जब इनका भी जीवन सुखी और समृद्ध बनेगा। इनके बालकों को भी देश और दुनिया में उपलब्ध ऊंचे-से-ऊंचा ज्ञान प्राप्त हो सके ओर वे ऊंचे-से-ऊंचा सम्मान प्राप्त कर सकें, जो कि शताब्दियों से तथाकथित उच्च जातियों को मिलता रहा है। कमीशन अपने कार्य को तेजी से बढ़ा रहा था और मेरे मन में शनैः-शनैः यह बात जमती जा रही थी कि मुझे एक-न-एक दिन इन पिछड़े हुए लोगों की सेवा का काम करना है। काकासाहेब से मैंने कार्य प्रारम्भ करते समय कहा था कि मैं आपके पास केवल कुछ सीखने आया हूं, इसलिए आप जिस दिन कमीशन की रिपोर्ट भारत सरकार को देंगे, उसी दिन मैं इन पिछड़े लोगों में काम करने चला जाऊंगा। मुझे वास्तव में इस शहरी वातावरण में रहने की कोई इच्छा नहीं है। काकासाहेब के पास रहते हुए अभी ४-६ महीने ही बीते थे कि इसी बीच स्नेहमयी सरोज बहन से इतनी आत्मीयता हो गई कि उन्होंने मुझसे पूछा, "पदमभैया, तुम्हें रहने और खाने में इतनी दिक्कत होती है, क्या तुम हमारे पास आकर रहना पसन्द करोगे ?" सरोज बहन की यह बात सुनकर तो मन खुशी से गद्गद हो गया। रहने का सुविधाजनक स्थान, वह भी काकासाहेब के साथ । मैंने तुरन्त "हां" कर दी। सरोज बहन ने काकासाहेब से बातचीत की और आखिर दूसरे ही दिन मैं अपना छोटा-सा बोरिया-बिस्तर लेकर उनके घर आ गया। काकासाहेब के मकान में उनके कमरे के पास दो खिड़कियां और बिना दरवाजे वाला एक बरामदा था, जिसमें एक और नौजवान व्यक्ति श्री नटवर ठक्कर रहते थे। वह भी कमीशन में ही काम करते थे। मैं अपना अधिकतर समय केवल काकासाहेब के पास ही गुजारता था। दस बजे कमीशन के दफ्तर में जाना होता था। तब तक मैं काकासाहेब के पास लगी मेज और उससे सटकर खड़े हुए रैक के सहारे टिका काकासाहेब के मिलने वाले लोगों की बातचीत सुनता रहता था या स्वयं उनसे बीच-बीच में प्रश्न करके उनकी ८० / समन्वय के साधक
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy