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प्यारे आचार्य मुरलीधर घाटे
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पूज्य काकासाहेब एक बड़े साहित्य-सेवी के नाते सर्वत्र विख्यात हैं। वह केवल साहित्य के ही क्षेत्र में प्रिय हैं, ऐसी बात नहीं है। उन्होंने अनेक ग्रंथ लिखे हैं। उनका सम्पूर्ण साहित्य विचार-मूलक है। नाटक, उपन्यास, काव्य या व्यंग्य इत्यादि का उन्होंने स्पर्श तक नहीं किया। लेकिन उनके साहित्य का अध्ययन करनेवालों को उससे काव्य का रस सर्वन मिलता है, भले ही पुस्तक मृत्यु के संबंध में हो या श्मशानों की यादगार हो या गीता का भाष्य हो। उनकी वर्णन-शैली बड़े ही सजीव चित्र अंकित कर देती है। 'उत्तर की दीवारें' अथवा 'स्मरणयात्रा' पढ़ते समय कितने ही नाट्य-प्रसंग पाठकों के सामने खड़े हो जाते हैं। नाटक की भव्यता 'जीवन का आनन्द' में पाठक पा सकते हैं। काकासाहेब कड़ी धूप में भी काव्यमय आनन्द दे सकते हैं। जीवन की ओर देखने की उनकी दष्टि विलक्षण है। वह विनोदी लेखक नहीं हैं लेकिन उनके लेखन के प्रवाह में विनोद तैरते आते हैं और गंभीर प्रकृति के व्यक्ति के लिए भी कहीं-कहीं हंसी रोकना मुश्किल हो जाता है। आप साहित्यकार हैं, लेकिन निराले ढंग के। उनके प्रचलित साहित्य ने सेवक निर्माण किये हैं और सतत कार्यरत रहने की प्रेरणा भी उन्हें दी है।
अंत्योदय की प्रेरणा काकासाहेब से पाकर दूर आदिवासी क्षेत्रों में और दुर्घट हरिजन निवासों में जाकर बसने वाले अनेक सेवक अब भी मौजद हैं। वे उनके प्रेरक पत्रों से प्रेरणा पाते रहते हैं। उनकी प्रतिभा ने निर्जीव ग्रन्थ ही निर्माण नहीं किये, लेकिन जीवन समर्पित करनेवाले असंख्य जीवित और जाग्रत सेवक भी तैयार किये हैं। उनके ग्रंथों का मूल्य रुपयों में गिना जा सकता है, लेकिन उनके साहित्य ने जो सेवा-क्षेत्र में प्रेरणा दी है, वह अनमोल है। उनका यह चिर-स्थायी साहित्य है। उसका नाश होनेवाला नहीं है।
काकासाहेब ने एक साहित्यकार के नाते अनेक पुरस्कार पाए हैं। उन पुरस्कारों को पाकर उन्होंने पुरस्कारों की ही गरिमा बढ़ाई है।
काकासाहेब के शिष्यों का समुदाय भी काफी लंबा-चौड़ा है। काकासाहेब की आयु जितनी लंबी और सुहावनी है, उतनी ही सूची लंबी और प्रेरणादायी है।
काकासाहेब के साहित्य ने जीवन के सब पहलुओं का स्पर्श करने का प्रयत्न किया है। इसलिए वह सही मानी में साहित्य है । वह जीवन के उपयोग में आता है। पढ़ा और फेंक दिया, यह साहित्य का मूल्य नहीं है। पढ़ा और प्रेरणा पायी, यह साहित्य का मूल्य है।
हम जब गुजरात विद्यापीठ में पढ़ते थे तब चर्चा छिड़ती थी कि काकासाहेब का अपना खास विषय कौन-सा है ? कोई कहते, उनका विषय इतिहास है; कोई कहते, भूगोल है; कोई कहते, साहित्य है। संस्कृत भी उनका विषय हो सकता था। गुजराती भाषा के वे लेखक माने जाते थे। लेकिन सच यह है कि उनके खास विषय का पता नहीं चलता था । किसी ने साहस करके कभी उनसे पूछा तो जवाब मिला, "गणित।" यह एक बड़ा विनोद ही था। किसी को इस जवाब की अपेक्षा भी नहीं थी। इसके मानी यह है कि वह किसी भी विषय को अपना सकते हैं । वह खगोल-शास्त्रज्ञ हैं। भूगोलशास्त्रज्ञ हैं। गद्य के पंडित हैं, इसी तरह संगीत के पंडित भी हैं । वह अनेकविध सम्मेलनों के सभापति रह चुके हैं। राजकोट के संगीत-सम्मेलन के सभापति का स्थान भी आपने सुशोभित किया था। यह आश्चर्य की बात नहीं है। उस समय संगीत भी एक सेवाक्षेत्र बन
व्यक्तित्व : संस्मरण | ७१