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________________ गया है। मनाई होने पर सब मुस्लिम कैदियों ने उपवास शुरू किये। उनके साथ सहानुभूतिपूर्वक काकासाहेब ने भी उपवास किये। काकासाहेब के उपवास के कारण ही सरकार ने मनाई हुकुम हटाकर अजां की इजाजत दे दी किन्तु जेल में उपवास करने के गुन्हा की शिक्षा भी दी। सबको एकत्र रखा और पढ़ने-लिखने की सहूलियत बंद कर दी । उस समय मौलाना हुसैन अहमद मदनी के साथ काकासाहेब ने सारा पवित्र कुरान पढ़ा और इस्लाम का मर्म समझ लिया। बाइबल का अध्ययन भी काकासाहेब ने किया है। जब मौका मिलता है तब चर्च में,या मस्जिद में या गुरुद्वारे में बैठकर प्रार्थना करते काकासाहेब को बड़ा आनंद आता है। . काकासाहेब के साथ भारत-भर में और देश-विदेशों में प्रवास करने का सौभाग्य मुझे मिला है। हमने अपने देश के श्री शाह सलीम चिश्ती ख्वाजासाहेब की दरगाह जैसे अनेक पवित्र स्थानों में और ईजि अफीका और वेस्टइन्डीज तक की मस्जिदों में कुरान-शरीफ का पहला सूरा (अध्याय) अल् फातिहा पढ़ा है। जर्मनी, फ्रांस, इंगलैंड, अमरीका के जग विख्यात चर्चों में और कथीलों में बैठकर ईशु भगवान का ध्यान किया है। अमृतसर के सुवर्ण मंदिर जैसे अनेक गुरुद्वारों में पवित्र ग्रंथसाहेब सुना है। और भव्यातिभव्य मंदिरों में भी प्रार्थना की है। काकासाहेब को मैंने हर जगह पर एक ही तरह ध्यान-मग्न होते देखा है। काकासाहेब के अंगत संबंधों में भी सब देश के सब धर्म के लोग हैं। उनको पिता तुल्य मानने वालों में से किस-किसकी याद करूं ! जापान की कात्सु, युकीको, ओकामोतो दम्पति, भाई कोंकी नागा इत्यादि कैनेडा के मीआ और क्लाउस, एलीज वगैरा अमरीका के स्नेही नाइल्स दम्पति, स्वर्गीय मार्टिन ल्यूथर किंग, और कितने सारे स्नेही ! जर्मनी के हमारे भाई आल्फ्रेड वफ़ैल और भारत में तो बिलकुल बेटी जैसी रेहाना बहन. अमतस्सलाम बहन, आल बहन, फीरोजा बहन, वगैरा अगणित नाम ध्यान में आते हैं। मूल स्पेन के किन्तु अब भारतीय नागरिकता प्राप्त किये हुए संत फादर वालेस जिन्होंने गुजराती को अपनाकर उसमें किताबें भी लिखी हैं, वे काकासाहेब के मानो निकट के रिश्तेदार ही हैं। इस तरह से समन्वय काकासाहेब के जीवन का एक अंग ही नहीं, जीवन में पूर्ण रूप से व्यापक हो गया है। जिस भी प्रान्त में या देश में काकासाहेब जाते हैं, वहां के लोग उनको पूर्णतया अपना मानकर उनके साथ अपनी सारी मुश्किलों की गहरी चर्चाएं निःसंकोच करते हैं। गुजराती तो वे पूरे बन ही गये हैं। किन्तु आसाम के लोग भी उनको अपना मानते हैं-यहां तक कि आसाम की पहली यूनिवर्सिटी के कूल-नायक (वाइस चान्सलर) होने का आमंत्रण काकासाहेब को दिया गया था। जापान में भी एक विद्वान बौद्ध भिक्षुक ने कहा, "काकासाहेब आपके साथ बात करते हम भूल ही जाते हैं कि आप जापानी नहीं हैं और अन्दर के सब सवाल आपके सामने रख देते हैं !" ऐसे उद्गार दुनिया के कई कोनों में मैंने सुनकर धन्यता का अनुभव किया है । इसका कारण यही है कि काकासाहेब के मन में कोई भेद-भाव नहीं है। जैसी गहरी भक्ति हिमालय के प्रति है उसी तरह की भक्ति की दृष्टि से वे फुजीयामाको और किलि मांजारों जैसे पर्वतों को देखते हैं। श्रीगंगामैया,यमुना-माता को जिस भाव से नमन करते हैं उसी भाव से नील-मैया, रहाइन-मैया इत्यादि को नमते हैं। मैंने अनुभव किया है कि काकासाहेब के लिए कुदरत तो भगवान का ही साकार रूप है। भगवान तो एक ही हो सकते हैं । फिर भेदभाव आ ही कैसे सकता है ? समन्वय की साधना के द्वारा आत्मैक्य, सबके साथ ऐक्य का अनुभव करना यही मोक्ष की उनकी व्याख्या है। ५० / समन्वय के साधक
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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