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वापस ला सका। वापस आने के बाद कुछ समय सनातनी ऋषिकुल में मुख्य अधिष्ठाता रहे। वहां रहते हुए गुरुकुल के आर्य समाजी लोगों से उनका प्रेमादर का सम्बन्ध रहा जो उन दिनों करीब असंभव सा माना
जाता था ।
बाद में कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर के शान्तिनिकेतन में पहुंचे। वहां कविवर ने थोड़े ही दिनों में संस्था के आजीवन सदस्य का पद लेने का आग्रह किया।
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अपना हृदय तो कविवर को दे ही चुके थे। एक विभाग का व्यवस्थापकपद लेने की भी करीब-करीब स्वीकृति दी थी कि इतने में १६१५ में गांधीजी -- कर्मवीर गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत पधारे। गांधीजी स्वयं विलायत होकर आये। उनके फीनिक्स आश्रम के लोग कुछ महीने पहले ही शान्तिनिकेतन में आकर रहे थे । उनके साथ काकासाहेब घुल-मिल गये । उन्हीं के साथ खाना-पीना, प्रार्थना करना — इत्यादि चला । बल्कि सुबह की प्रार्थना तो काकासाहेब ने ही बनाकर शुरू कर दी थी। बापूजी आये। उनसे काका साहेब की काफी चर्चाएं हुई और काकासाहेब को बापूजी पर पूरा विश्वास बैठ गया जब बापूजी ने काकासाहेब को अपने आश्रम में आने का आमंत्रण दिया, काकासाहेब ने कविवर से पूछा । उनसे आज्ञा लेकर गांधीजी के आमं aण को सहर्ष स्वीकार किया और अपने कुछ काम निपटाकर यथाशीघ्र वे आश्रम में पहुंचे ।
उस समय आश्रम में एक बड़ा उत्पात-सा मचा हुआ था ।
ठक्कर बापा ने एक हरिजन परिवार को बापूजी के पास भेजा। सारे समाज का और अपने लोगों का विरोध सहन करके भी बापूजी ने उस परिवार को प्रेम से अपनाया। पति-पत्नी और छोटी-सी पुत्री लक्ष्मी थे उस परिवार में। बरसों के साथी बापूजी की इस बात को सहन न कर सके । कई लोग आश्रम छोड़कर चले गये। कई लोग सिर्फ फलाहार पर रहने लगे। उनका कहना था कि अफ्रीका जैसे परदेश में तो यह सब ठीक था, किन्तु अपने समाज में यह कैसे चल सकता है।
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उसी समय काकासाहेब अपनी पत्नी और दो पुत्रों को लेकर आश्रम में आये और आनंद से सबसे मिल-जुलकर रहने लगे ।
आश्रमशाला में हिन्दू-मुस्लिम, हरिजन हर तरह के बच्चे थे ही ।
कुछ साल बाद जब बापूजी के आदेश से काकासाहेब गुजरात विद्यापीठ चलाते थे तब उन्होंने देखा कि ब्राह्मण रसोई करनेवाले, संस्था के चौके में किसी को आने नहीं देते थे। उनका विरोध करने से पहले काकासाहेब ने बाकायदा डबल रोटी बनाने का तरीका सीख लिया, उसके लिए भट्टी बनवाई और फिर नियम किया कि रसोई में जाने की किसी को मनाई नहीं होगी ।
आश्रम में इमामसाहेब की बेटी आमिना अपने को पूज्य काकासाहेब की बेटी मानने लगी । काकासाहेब के रसोई घर में जाकर उनके साथ काम करने लगी थी। अपने यहां कोई अच्छी चीज बनी हो तो ले आती थी। बिलकुल एक परिवार का वातावरण था ।
विद्यापीठ में काकासाहेब ने अलग-अलग धर्म के मूर्धन्य जानकारों को बुलाकर सब धर्मों का गहरा अध्ययन शुरू करवाया । बौद्धधर्म के विश्व विख्यात पंडित श्रीधर्मानंद कोसंबी, जैन-धर्म के प्रखर ज्ञाता पंडित सुखलालजी और पंडित बेचरदासजी जैसे निष्णातों को इकट्ठा किया । इस तरह से धर्म - समन्वय का काम चला । एक जेल यात्रा में काकासाहेब ने मशहूर मौलाना मदनी से कुरान शरीफ का अध्ययन किया। यह मौका काका साहेब ने अच्छी तरह कमाया था। इस जेल यात्रा में जेलवालों ने मुस्लिम कैदियों को अजां देने की मनाई कर दी यह कहकर कि आप बहुत बड़ी आवाज में अजां पुकारते हैं, उससे अन्य कैदियों को तकलीफ होती है । हर नमाज के वक्त अजां देकर लोगों को नमाज के लिए जाग्रत करना यह उनकाअनिवार्य धार्मिक तरीका माना
व्यक्तित्व: संस्मरण / ४६