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आचार्य विनोबाजी, वामन दत्तो पोद्दार, काकासाहेब, सप्रेजी, गर्दैजी, पराड़करजी, शेवड़ेजी इत्यादि मराठी भाषा-भाषी ही रहे हैं। भाई माचवे भी मराठी भाषा-भाषी हैं ।
हम हिन्दीवाले स्वभावतः आत्म- केन्द्रित बन गये हैं । हम यह चाहते हैं कि सब लोग हमारी भाषा हिन्दी को सीखें, चाहे हम कोई अन्य भाषा न सीखें । इन्दौर में रहते हुए मैंने मराठी नहीं सीखी। गुजरात में रहते हुए गुजराती नहीं सीखी, बंगाल में रहते हुए बंगला नहीं सीखी। अपने इस अक्षम्य अपराध को मैं लज्जापूर्व स्वीकार करता हूं। मगर काकासाहेब ने तो बंगला पर अधिकार प्राप्त कर लिया था ।
Tara पहली दिसम्बर को ६५ वें वर्ष का प्रारम्भ कर रहे हैं। शायद बैरिस्टर मुकुन्दीलाल उनके सम-वयस्क हैं। पं० सुन्दरलालजी उनसे एक वर्ष छोटे थे। यह आश्चर्य की बात है कि यह त्रिमूर्ति लोकमान्य के निकट सम्पर्क में आने के बाद महात्माजी की अनन्य भक्त बनी। काकासाहेब अन्ध-भक्त किसी के नहीं हैं । वे अपना स्वतन्त्र व्यक्तित्व रखते हैं। राष्ट्र-भाषा हिन्दी के लिए, उसकी सरल-सुबोध शैली के लिए, काकासाहेब ने जो महत्त्वपूर्ण कार्य किया है, उसे हम हिन्दीवाले कभी नहीं भूल सकते । O
सर्वधर्म - समन्वय में अटल निष्ठा
जी० रामचन्द्रन
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काकासाहेब से मेरा सम्पर्क साबरमती के सत्याग्रह आश्रम में १९२४ और अगले कुछ वर्षों में हुआ था । विश्वभारती से बी० ए० पास करने के बाद ही मैंने इस आश्रम में प्रवेश लिया था। विश्वभारती ( शान्तिनिकेतन) से निकलकर साबरमती के सत्याग्रह आश्रम में प्रवेश करने के कारण मेरे जीवन में जो आकस्मिक परिवर्तन आया, उसने मेरे तन-मन को पूर्णरूप से झकझोर दिया। विश्वभारती में मैंने विख्यात भारतीय तथा विदेशी प्राध्यापकों से साहित्य, दर्शन तथा समाजशास्त्र का अध्ययन किया था । विश्वविद्यालय की कक्षाओं से अधिक शिक्षा मैंने कक्षाओं से बाहर प्राप्त की, क्योंकि मैं शान्तिनिकेतन के बौद्धिक, कलात्मक और सांस्कृतिक वातावरण से घिरा हुआ था। लगभग प्रत्येक दिन कोई-न-कोई ऐसा उत्सव अवश्य होता था, जो मेरे मन को समृद्ध करता था तथा मुझे अपने देश की सांस्कृतिक विरासत तथा ललित कलाओं को जो कि हमारे सांस्कृतिक पुनर्जागरण की गंगा में प्रस्फुटित हो रही थीं, समझने में सहायक होता था। सत्याग्रह आश्रम में आते ही मैंने अपने आपको अनुशासन तथा सृजनात्मक कार्य में व्यस्त पाया। इसमें खादी उत्पादन का कार्य भी था, जिसमें रूई से कपड़ा बनाने की प्रत्येक प्रक्रिया सम्मिलित थी । सत्याग्रह आश्रम में हम प्रतिदिन आठ घण्टे का उत्पादन कार्य करते थे— जैसे, रूई का ओटना, चुनना, कातना तथा बुनना इत्यादि । इसके अतिरिक्त हमारी दिनचर्या में खादउत्पादन जैसा खेती-बाड़ी का काम भी सम्मिलित था। आश्रम में लड़के-लड़कियों के लिए एक शाला भी थी, जिसमें विद्यार्थी आधे समय उत्पादन कार्य तथा आधे समय विषयों का अध्ययन करते थे । परन्तु साथ ही गांधीजी के साथ प्रतिदिन रहना तथा उनको ध्यानपूर्वक सुनने का ( विशेषतः शाम को आयोजित प्रार्थना सभाओं में) लाभकारी और सुखद अनुभव भी था । तथापि मुझे एक प्रकार की मानसिक क्षुधा तथा शारीरिक थकान-सी महसूस होने लगी थी। तभी काकासाहेब सत्याग्रह आश्रम में कुछ दिन बिताने के लिए अचानक आ पहुंचे। वह
३० / समन्वय के साधक