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नहीं लूंगा। किन्तु मुझे जिम्मेदारी में से मुक्त कीजिए। गैंडे की तरह या अश्वमेध के घोड़े की तरह स्वच्छंद विहार करने दीजिए।"
बापूजी एक ही बात कहते रहे कि "काम तुम्हारा है। चलाओ या छोड़ो, तुम्हारा सवाल
लेकिन अब किससे मुक्ति मांगू?
१५ अगस्त तक स्वराज्य प्राप्ति के संकल्प का आग्रह था। वह निकल गया और मेरे सब दोषों के साथ मुझे निभा लेनेवाले बापूजी भी गये !...अब काम करते रहने में रस नहीं रहा। हिन्दुस्तानी का काम ठीक चल पड़े तबतक जिम्मेदारी छूटती नहीं। लेकिन संस्थागत काम चलाने की शक्ति ही अब कम हो चली है। इसलिए सोचा है कि साल-दो साल में संपन्न हो जाये, ऐसा कोई गांधी-कार्य करके फिर दृढ़ता के साथ छूट जाऊंगा। इसलिए गांधी-संग्रह का काम उठा लेने को तैयार हुआ हूं, किन्तु यह भी यदि मेरे जिम्मे न आए तो अच्छा ऐसी इच्छा है। लेकिन इस काम को प्रयत्न पूर्वक टाल भी नहीं सकता।
निवृत्त हो जाने के बाद तो आप चाहेंगे इतना लेखन-कार्य कर सकूँगा। मेरे लिए यह एक विनोद है। और तबतक कुछ भी नहीं हो सकेगा। ऐसा थोड़े ही है ? दिसम्बर में बंबई में मिलेंगे तब सारी बातें करेंगे।
आपके पत्र में आप घर के लोगों का और बच्चों का उल्लेख भी नहीं करते ! क्यों आप भूल जाते है कि एक दिन मैं आपके घर आया था और बच्चों के साथ खेला भी था। सबको अनेक शुभाशिष।
काका के सप्रेम
वंदेमातरम्
बंबई-६
५-२-५३ प्रिय जेठालाल,
दिल्ली से यहां आते या यहां से वापस जाते समय अहमदाबाद होकर, आपसे मिलकर जाने का निश्चय किया था। लेकिन देव ने बाधा डाली।
ता०८ को दिल्ली में एक कार्यक्रम स्वीकार कर लिया है। पिछड़े वर्ग आयोग का काम भी उसी दिन संभाल लेने का कबूल कर आया हूं।
अब बंबई में रहनेवाले गुजरातियों के लिए अफ्रीका के बारे में व्याख्यान 'इंडियन मर्चेण्ट्स चेम्बर' में देने का मैंने स्वीकार किया था । ता० ३.४ तक वह व्याख्यान हो जाने वाला था। यह काम निपटाकर, अहमदाबाद होकर दिल्ली जाने का मेरा विचार था। किन्तु वह व्याख्यान अब छठी की शाम को ही हो सकेगा।
गुजरात और अफ्रीका का संबंध देखते इस व्याख्यान द्वारा गुजरात की भी कुछ सेवा हो सकेगी
२६२ / समन्वय के साधक