SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 307
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ और अफ्रीका का महत्त्व तो है ही, इसलिए व्याख्यान को छोड़ देना उचित नहीं समझा। वृद्धावस्था का अनुभव जैसे-जैसे होता जाता है, तैसे ही, हो सके इतनी सेवा कर छूटने का लोभ भी जागृत होता जाता है। पिछड़े वर्ग आयोग का काम भी इसी तरह सिर पर ले लिया। अहमदाबाद जाकर आप से मिल नहीं सकता। आप बुरा नहीं मानेंगे, ऐसा विश्वास है। पिछडे वर्ग आयोग के काम से घूमते-घूमते अहमदाबाद जाने का क्रम होगा ही। एक साल तक तनिक भी दया किये बिना प्रवास करना है। हरिजन, गिरिजन और अन्य दलित जनों की सेवा के उत्साह के कारण जरूरी शक्ति आसानी से मिल जायेगी, ऐसी श्रद्धा भगवान ने दी है। मेरी सूचना है कि जब भी आपको फुरसत मिले आप मेरे पास दिल्ली चले आइये। खास काम हो तभी आना ऐसा थोड़े ही है ? मान मिलने के आनंद की खातिर आइए। दो-चार दिन मिलें तो दो-चार दिन और आठ-पन्द्रह मिले तो आठ-पन्द्रह दिन के लिए। जब मैं दिल्ली में रहूं तब आ ही जाइए। श्री दादासाहब से भी मिलना हो जाएगा। आपका आने-जाने का खर्चा वहन करने में मुझे जरा भी मुश्किल नहीं है। साथ रहने का जो आनन्द मुझे मिलेगा, यह लाभ कम नहीं है। कवि श्री नरसिंहर भोलानाथ तैलचित्र अनावरण समारंभ के लिए संदेशा साथ भेज रहा हूं। अफ्रीका इत्यादि देशों से जो विद्यार्थी भारत में शिक्षण पाने के लिए आते हैं, उनकी सुविधा संभालने के लिए और अपने समाज में उनका परिचय करवाने के लिए दिल्ली में आई०सी० सी० आर० (इंडियन कौंसिल फॉर कल्चरल रिलेशन्स) ने एक नया विभाग शुरू किया है। इसको चलाने के हेतु मैंने श्री किशनसिंह चावड़ा को पसंद किया है। राजनैतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से इस काम का बड़ा महत्त्व है। स्वराज्य मिलने के बाद इतनी सारी प्रवृत्तिओं के द्वार खुल गए हैं कि पर्याप्त संख्या में मनुष्य नहीं मिलते, इसी का दुःख रहता है। पिछड़े वर्ग आयोग के लिए भारत-भर भ्रमण करूगा तब अपने साथ एक-दो युवकों को रखनेवाला हूं। तनख्वाह की बात नहीं है। खाने-पीने का और तीसरे वर्ग के प्रवास का खर्च दंगा और वर्ष के अन्त में हरिजन और गिरिजन की सेवा के किसी केन्द्र में उन्हें रख दंगा। ऐसी सेवा करने के लिए जो तैयार हो, ऐसे युवक आपके ध्यान में हैं तो मुझे बताइए। परीक्षितलाल ने जैसे सेवा के पीछे सब कुछ छोड़ दिया है, ऐसा करनेवाला युवक चाहिए। परीक्षितलाल को भी पूछना चाहता हूं। मेरी ओर से आप उनसे पूछ लीजिये। काका के सप्रेम वन्देमातरम् पुण्डलीक को अहमदाबाद १८-३-३० प्रिय पुंडलीकजी, मराठी दूसरे वर्ग में पढ़ता था, तबसे शिवाजी महाराज की और महाराष्ट्र के स्वातंत्र्य की बातें १. गंगाधरराव देशपांडे के अंतेवासी और काकासाहेब के अनुरागी। पत्रावली | २६३
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy