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मानता हूं कि बापूजी की मदद से ही किशोरलालभाई को हम लौटा सकते हैं।
विद्यालय और आश्रम के बीच एक राय नहीं है, इसके बारे में तुमको जितना दुःख है, उससे अधिक दुःख मुझे है, क्योंकि मैं इसमें दोषी हूं । परंतु मैं कृत्रिम ऐक्य कैसे बता सकूं ? मुझे तो मगनलालभाई और मेरे बीच भाव-भेद तथा इससे भी ज्यादा दृष्टिभेद स्पष्ट दीखता है। कितनी ही बार हम दोनों जनों ने निखालिसता से चर्चा की है हर बार कुछ भी कड़वाहट के बिना वह यह कर सके हैं, बड़ी भारी सुंदर स्थिति है । तुम्हारे आने के बाद मैं अधिक नियमित होता जाऊंगा । शरीरश्रम भी मुझे करना ही चाहिए । मगनलालभाई अधिक अनुभव से ज्यादा समझ पायेंगे, ऐसी दोहरी आशा से ही मैं इस समय काम कर रहा हूं । परंतु सच्चा और शीघ्र उपाय तो तुम आकर विद्यालय में काम करने लग जाओ, यही है । विद्यालय और आश्रम एक बनाने के वास्ते चाहे जो कुछ करने को तैयार हूं, हट जाने के लिए भी ।
मेरी दूसरी आशा किशोरलालभाई में बनी हुई है । उनके समान निखालस, प्रेमी, सौम्य फिर भी दृढ़ और ईश्वरपरायण मनुष्य के हाथ में हमारी संस्था शोभा दे, यह मेरे विचार तुम जानते ही हो। तुम और किशोरलालभाई यहां बैठकर काम चलाओ और मुझे अपने लायक काम करने दो, इससे तमाम सवाल सुलझ जाएगा ।
मुझे बहुत लिखना था, किन्तु अभी समय नहीं है। चि० राधाबहन को भी अभी लिखने वाला था, आज समय नहीं मिलेगा, तो कल लिखूंगा। अपनी तबीयत खूब संभालना और स्वस्थ होकर आना ।
काका के शुभाशिष
(२)
१४-३-४२
प्रिय प्रभुदास,
अब तो तुम्हारा पत्र आने पर आनंद के साथ आश्चर्य भी होता है जब तुम्हारा पत्र आता है। तब यही विचार आता है कि तुम्हारी वर्षगांठ है क्या ?
ता० ५-३ का पत्र मिला। श्री जमनालालजी के अवसान का समाचार पुणे में सुना तब किसी तरह यह भरोसा ही नहीं बैठता था । तब मैं तुमको किस प्रकार अपना आत्मविश्वास पहुंचा सकूं कि मैं जल्दी से मरनेवाला नहीं हूं। मैं इतना ही कह सकता हूं कि मेरा स्वास्थ्य बढ़िया है। "एलाइव एंड किकिंग, एदी अमेरिकन्स वुड से " ।
मैंने देखा है कि प्रवास में दौड़ते हैं तब बुढ़ापा और मृत्यु को सांस भर आता हैं और वे काफी पिछड़ जाते हैं ।
तुम जिस युवक के बारे में लिखते हो (सभी युवक 'नी' होते हैं-आठ नहीं !!) उसका विचार करते हुए मुझे लगता है कि वह यहां जुलाई में आवे तो ठीक रहेगा । अब यहां गर्मी शुरू हो गई है। गर्मियों
यहां रहूंगा ही, ऐसा भरोसा नहीं है। अगर बाहर जाऊं तो उसे अपने साथ तो नहीं ले जा सकता और उसे यहां पर काम दे सकूं, यह निश्चय नहीं कह सकता। मैं मानता हूं कि वह विवाहित नहीं है। उसके अक्षर अगर अच्छे हों, हिंदी और उर्दू शुद्ध तथा सुवाच्य गति से लिख सके तो उसे आज ही ले सकता हूं । बहुत से युवकों को हिज्जे का ख्याल नहीं होता, लिखने में चौकसाई नहीं होती और अक्षरों में तो देवदास
२९० / समन्वय के साधक