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________________ बढ़ई के काम से या खेतीवाड़ी के काम से उच्च जाति के युवक कभी इतना नहीं कमा सकेंगे कि ! अपने परिवारवालों की उच्च वर्ग की जरूरतें और शौक को पूरा कर सकें । इसलिए ऐसे धंधे पसंद करनेवालों को कौटुंबिक जिम्मेदारी का सच्चा यानि मर्यादित, ख्याल ही होना चाहिए। बहन की शादी करनी को तीर्थ-यात्रा करने ले जाना है, भाई को इन्जिनियरिंग कॉलेज में शिक्षण दिलाना है, पिता का किया हुआ कर मुझे ही चुकाना है, विधवा बहन को दोनों घरों के विरोध के बावजूद नर्स का शिक्षण देना है, इत्यादि-इत्यादि । मनोरथ छोड़ ही देने पड़ेंगे, और यदि ऐसा न सके तो जीवन का सारा उद्देश्य ही बदलना चाहिए । इनमें से एक भी मनोरथ काल्पनिक नहीं है । इन सब के उदाहरण मेरे पास हैं । श्रम जीवन ही निष्पाप जीवन है, ऐसा जीवन हम व्यतीत करें और निकटतम और नाजुक-सेनाजुक सगे-संबंधियों को भी ऐसा जीवन व्यतीत करने का परामर्श दें, उसमें कठोरता नहीं, किन्तु स्वाभाविकता, पवित्रता और प्रतिष्ठा है, ऐसा समझकर चलेंगे, तभी हम समाज सेवा के आदर्श को पहुंच पायेंगे। एक मजदूर किसी का आश्रित नहीं बनता, न किसी को अपना आश्रित बनाता है । इसीलिए उसका जीवन अत्यंत स्वाभाविक होता है । जो लोग अपने आश्रितों की संख्या बढ़ाते हैं, वे सामाजिक द्रोह करके ही कमाई कर सकते हैं । जो लोग खोटा, गलत, दया भाव बढ़ाते हैं, उन्हें जाने-अनजाने, सच्ची कठोरता भी करनी पड़ती है, क्योंकि जिनके प्रति प्रेम का या सामाजिक संबंध नहीं है, उनके प्रति कठोर और द्रोही बने बिना, उनका अनुचित फायदा लिये बिना अपने सगे-संबंधियों पर वे दया कर ही नहीं सकते । अब आप मेहनती जीवन की आवश्यकता और उसका स्वरूप समझ सकेंगे । शिक्षक का धंधा करना हो, तो शिक्षण के आदर्श प्रथम हृदय में उतारने चाहिए। शिक्षक की दीक्षा लेनी चाहिए। निरीक्षण, परीक्षण और उद्योग का महत्त्व समझ लेना चाहिए। बोध-शक्ति, धीरज अथवा सहन-शक्ति और सेवा-भाव प्रथम अपने में लाने के बाद ही हम शिक्षण शास्त्री बन सकेंगे और आज तो सच्चे शिक्षण-शास्त्री को अंत्यज, महिला वर्ग और गांव के लोगों को शिक्षण देने की जिम्मेदारी प्रथम अपनानी चाहिए। बच्चों को शिक्षण देना जितना जरूरी है, उतना ही - बल्कि उससे भी अधिक आवश्यक है गांव के बड़ी उमर के किन्तु अनजान लोगों को शिक्षण देना । इस कार्य के लिए आप तैयार हैं ? तैयार हो तो आ जाओ मेरे पास । मुझे आपकी आवश्यकता है । (२) काका कालेलकर के सप्रेम वंदेमातरम् गुजरात विद्यापीठ अमदावाद आषाढ वद १. सोम. प्रिय भाई बबल महेता, ता० १६ का आपका पत्र मिला। मेरे पत्र में लिखी सब सूचनाएं और चेतावनियों का पूरा विचार करने के बाद ही आपने निर्णय किया होगा । आपके भाई ने भी परिवार का आप पर का हक उठा करके ही २८६ / समन्वय के साधक
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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