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________________ आपको आज्ञा दी होगी । आप यहां आयेंगे तब इस बात का खास ख्याल रखिये कि आपके कपड़े और बिस्तरे में परदेशी कोई भी चीज न आ जाये विद्यापीठ का सिद्धान्त है कि यहां के सारे संचालक, सेवक और विद्यार्थी मात्र खादी का ही प्रयोग करें। अस्पृश्यता निवारण, सरकार के साथ का असहकार, उद्योग का महत्त्व, शरीर धम करने की तैयारी, गरीबों की सेवा ही सच्चा 'करीयर' है, यह श्रद्धा आप में होगी ही, ऐसा मैं मानता हूं । विद्यापीठ ही उसके सेवकों का 'इन्श्योरन्स' है । सेवकों की आजीविका के लिए कभी उलझन पैदा नहीं होती । यह अनुभव या श्रद्धा आप में होगी या आ जायेगी, ऐसा मैं मानता हूं । अमृतलाल नानावटी को चि० अमृतलाल 3 " मनसा चिन्तितम् कार्यम् देवेनान्यत्र नीयते ।" हम कार्यक्रम एक ढंग से सोचें और देव उसे दूसरा रूप दे देता है। काका के सप्रेम शुभाशीष चलती-फिरती रेलगाड़ी से २०-७-६९ 1 हम दिल्ली से सबसे विदा लेकर समय पर निकले। ट्रेन में खाना खाया, प्रार्थना की और पूरे विश्वास से सो गये। रात को मेरी आदत के अनुसार दो-तीन दफे जागा, देखा तो ट्रेन मुझसे भी ज्यादा आराम से सोयी पड़ी थी। सोचा कि किसी से पूछ लूं कि कौन-सा स्टेशन है। छोटे-से स्टेशन पर पूछने के लिए आदमी भी आसानी से नहीं मिलते और मिले भी तो उसका जबाब में सुन सकूं तब न ? सुबह देखा तो हम रात के साढ़े दस बजे से स्वर्ग के राजा इन्द्र की घड़ी पर ही सोये हुए हैं। दरियाफ्त करने पर पता चला कि आगे एक मालगाड़ी के कई डिब्बे रास्ता बिगड़ने से गिर पड़े हैं। नींद खुलने पर हमारी ट्रेन ने दो स्टेशनों की मुसाफिरी कर हमारी ट्रेन ने जानकारी प्राप्त की कि कोटा से एक ट्रेन इस तरफ आ रही है, और जब हमारी ट्रेन मालगाड़ी तक पहुंच जायेगी, तब हमें उतरकर मील- पौन मील चलकर वहां की ट्रेन में बैठना होगा और उस ट्रेन के यात्री हमारी ट्रेन पर सवार होंगे । यह सब यात्री विनिमय करते ग्यारह बज ही गये। एक गाड़ी में नाश्ता किया, दूसरी गाड़ी में भोजन । ऐसे समय पर सब यात्री और क्या रेलवे के कर्मचारी बहुत ही सज्जनता से एक-दूसरे की मदद करते हैं और इसी तरह के अनुभव याद करके उसका भी विनिमय करते हैं। समान संकट से परस्पर सहानुभूति पैदा होती ही है। रेलवे वालों ने बड़ी हिफाजत से हमें, हमारे नये यान तक पहुंचाया और हमारे सुख-सुविधा का ख्याल भी रखा। रेलवे की समय-सारिणी देखकर मैं तय कर सका कि कोटा स्टेशन जो मध्य रात को सवा बारह बजे आने वाला था। वह दोपहर के साढ़े बारह के बाद आ सका। इस हिसाब से हम समझ गये कि जहां १. काकासाहेब के अंतेवासी पत्रावली / २०७
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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