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पाल
आजकल की दिल्ली में मुगल काल की इमारतें ज्यादा हैं । सो तो हमने देखी ही थीं। मुगलों के पहले जब दिल्ली में पठान बादशाहों का राज था तब के दिल्ली के अवशेष हम देखने के लिए गए। पुरानी मस्जिदें, पुराने मंदिर और तालाब हम सबकुछ देख आए। हमने देखा कि बादशाह खान गंभीर होकर सबकुछ देखते थे। टूरिस्ट के छिछले कुतूहल से नहीं। उन्होंने सबकुछ मौन होकर ही देखा। भारत को आजाद करने का संकल्प मजबूत करके ही हम लौटे।
जब स्वराज्य नजदीक आया तब अंग्रेजों की कुटिल नीति जोरों से चली। जिन मुसलमानों को वे अपने हाथ में ले सके उनको लेकर सब तरह के विघ्न उन्होंने खड़े किए। हिंदू भी पागल बन गए । पूर्वी बंगाल, कलकत्ता, बिहार, दिल्ली, पंजाब अनेक जगह हिंदू-मुसलमानों ने एक-दूसरे की दुश्मनी करके स्वराज को खतरे में डाला। ऐसे समय हिंदू-मुसलमानों को शांत करने की कोशिश में बादशाह खान गांधीजी के साथ रहे। दोनों ने अपनी सारी रूहानी ताकत लगाकर देश को बचाया।
स्वराज मिला; लेकिन देश के दो टुकड़े हुए। सौ साल की अंग्रेजों की नीति सफल हुई; लेकिन अंग्रेजों को दोष देने से क्या लाभ ? हमारी अपनी राष्ट्रीय कमजोरी से ही तो अंग्रेजों ने लाभ उठाया।
देश के टकडे हए यह तो नुकसान हुआ ही लेकिन बंटवारा मंजर करने पर भी हिंदू-मुस्लिमों की दिलसफाई हो न सकी। स्वराज पाकर तीन बड़े दुख हमें सहन करने पड़े। गांधीजी का खून हुआ, सिंधी लोगों की दुर्दशा हई, और भारत के पठानों को पाकिस्तानियों के हाथों क्या-क्या सहन करना पड़ा सो तो भगवान ही जाने। पिछले बीस-पचीस वर्षों का सारा इतिहास देखते और इसमें पश्चिम के-इंगलैंड, अमेरिका के लोगों की नीति और कर्तृत्व देखकर ऐसा ही खयाल होता है कि भगवान का एक बड़ा शाप काम कर रहा है। दुनिया दिन-पर-दिन गहरी खाई में डूब रही है। दुनिया भर के राष्ट्र मानव की दुर्दशा देख रहे हैं । आज का मनुष्य बड़ा चिंतनशील है लेकिन पाप का पश्चात्ताप करके जब पुराना पाप खत्म होने लगता है तब भी न जाने कैसे नये-नये पाप बनाता ही जाता है । "इवन इन पीनेन्स प्लैनिंग सिन्स एन्यू।" ।
जबतक आदमी अपनी मैली-कुचैली बुद्धि चलाएगा, पाप में डूबता ही जाएगा। जमाना ही ऐसा आया है । अगर हम अपनी बुद्धि का अभिमान छोड़कर नम्रता से ईश्वर की शरण जाएंगे और भलाई के रास्ते ही जाएंगे तभी बच सकेंगे और दुनिया को भी बचा सकेंगे।
__ भारत और पाकिस्तान स्वराज लेकर बैठ गए। लेकिन बादशाह खान और उनके खुदाई खिदमतगार पठानों की दुर्दशा लगातार चल रही है। पाकिस्तान उनको परेशान करता ही रहता है। उन्होंने पाकिस्तान को मंजूर किया और लोकसेवा करते रहे तो भी उनकी परेशानी दूर नहीं हुई। आज बादशाह खान अपनी बीमारी का इलाज करने के लिए अफगानिस्तान में रह रहे हैं और बड़े दुख के साथ महात्माजी को याद कर रहे हैं। उनको भूल जाना यह भी एक पाप ही होगा।
गांधीवादी नीग्रो वीर
"हो सकता है कि नीग्रो-जाति में ही किसी दिन सत्याग्रह का बल प्रकट होगा, और आत्मशक्ति के प्रभाव से यह जाति दुनिया को चकित करेगी।" इस भाव का वचन गांधीजी के लेखों में पाया जाता है। यूरोप
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