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अमेरिका के गोरे लोग विज्ञान, यंत्रोद्योग, अर्थ संगठन और विशाल आयोजन के बल पर दुनिया पर अपना प्रभाव डाल बैठे हैं और अब आपस की ईर्ष्या असूया के कारण जंग की तैयारियां कर रहे हैं। इनके लिए आत्मशक्तिमूलक, तपस्यामूलक सत्याग्रह का स्वरूप समझना मुश्किल है और समझे तो भी इसका सहारा लेना उन्हें सुझेगा नहीं। जो लोग पीड़ित हैं और कुछ हद तक असहाय हैं, परास्त हैं वे ही अंतर्मुख होने पर आत्मशक्ति को ढूंढ़ सकते हैं और निराशा में से आशा का उद्भव होने पर आत्मशक्ति का प्रयोग भी कर सकते हैं।
भारत में हम लोगों की संख्या बहुत थी । हम अपने देश में ही थे । राजकर्ता चाहे जितने बलवान हों, थे मुट्ठी भर और बाहर से आए हुए । इनके सामने हमारा सत्याग्रह सफल हुआ इसमें कोई आश्चर्य नहीं । लेकिन अमेरिका में मूल आदिवासी तो करीब नामशेष हो गए हैं। यूरोप से आए हुए गोरे लोग सारी जमीन के मालिक बन बैठे हैं। वे अपनी सहूलियत के लिए अफ्रीका से वहां के काले लोगों को गुलाम बनाकर ले आए। इन गुलामों ने कल्पनातीत कष्ट सहन किए और अब उन्हें आजादी के साथ नागरिकता के अधिकार भी मिल चुके हैं। किंतु गोरों के समाज में ये काले लोग एक ही देश के नागरिक होते हुए भी घुल-मिल नहीं सके । इन नीग्रों लोगों की उन्नति तो ठीक-ठीक हो रही है। शिक्षा, तिजारत, उद्योग हुनर, सरकारी नौकरी और मिल मजदूरी इन सब क्षेत्रों में वे दृढ़ता के साथ आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन सामाजिक जीवन में इन्हें अभी भी अलग रखा जाता है और इनकी स्थिति भी अपमानजनक है। अमेरिका (युनाइटेड स्टेट्स) के उत्तर विभाग में नीग्रो लोगों की संख्या कम है। इसीलिए शायद उनकी स्थिति वहां अच्छी है। दक्षिणी राज्यों में ईख आदि की खेती के कारण मजदूरी के लिए नीग्रो गुलामों की सहायता लेने के कारण उनकी संख्या ज्यादा है और वहीं पर इनको अछूतों के जैसा रखा जाता है। गोरों के होटलों में इन्हें प्रवेश नहीं है। स्कूलों में इन्हें अलग रखा जाता है, यानी गोरों के स्कूलों में काले लड़कों को प्रवेश नहीं है। शहर में बस में बैठकर दूर-दूर तक जाने की आवश्यकता रहती है । इसमें रिवाज ऐसा है कि बस में गोरे लोग आगे बैठते हैं और काले लोगों को पीछे बैठना पड़ता है। कोई गोरा उतारू आने पर काले उतारू को अपना स्थान छोड़कर गोरे को जगह देनी पड़ती है। इस तरह कदम-कदम पर उनका अपमान होता है "कू क्लक्स क्लन' नामक गोरों का एक भूमिगत संगठन है, जो लोग धाक-धमकी देकर कालों को दबाते हैं, तरह-तरह के अत्याचार करते हैं और कायदे का एवं नागरिकता का अपमान करते हैं । भले भले प्रतिष्ठित सज्जनों को भी 'कू क्लक्स क्लन' से डरना पड़ता है। इनके खिलाफ कोई हिम्मत करे तो उसके लिए जान का खतरा रहता है। कल-कारखानों में जब अच्छे दिन आते हैं माल बढ़ाने की जरूरत रहती है, तब नीग्रो लोगों को कारखानों में लिया जाता है। लेकिन जब माल का उठाव कम होता है, कारखाने का काम घटाना पड़ता है, तब सबसे पहले नीग्रो मजदूरों को निकाल देते हैं। बेकारी का शिकार पहले वे हो जाते हैं । जब किसी भी कारण गोरे लोग चिढ़ जाते हैं तब कानून को बाजू पर रखकर गोरों की टोलाशाही नीग्रो लोगों को मार भी डालती है। इसे 'लिविंग' कहते हैं। गांव के बिगड़े हुए सब गोरे लोग जब तय करते हैं कि फलाना नीम्रो गुनहगार है, तो उसे कोर्ट के सामने खड़ा न करके, न्यायाधीश के द्वारा उसकी जांच कराए बिना उसे मनमानी सजा कर देते हैं । ऐसे अत्याचार पहले बहुत होते थे । अब कम हुए हैं, लेकिन गोरों का मिजाज जब बिगड़ जाता है, तब हर तरह का खतरा पैदा होता ही है।
ऐसी कठिन स्थिति में भी नीग्रो - जाति धीरे-धीरे अपनी उन्नति कर रही है। उन्होंने अपने विद्यालय और विश्वविद्यालय खोले हैं। नीग्रो जाति में अच्छे-अच्छे विद्वान् अध्यापक, लेखक, कवि, न्यायशास्त्री और उद्योगपति पैदा होने लगे हैं । प्रभावशाली धर्मोपदेशक, संस्थासंचालक और वक्ता भी इस जाति में अब पाए जाते हैं । ये लोग अपनी जाति के उद्धार के लिए जब प्रयत्न करने लगे, तब गोरों के साथ उनका संघर्ष बढ़ २७४ | समन्वय के साधक