________________
अपेक्षा रंगीन (पीले, गेहुएं और काले) लोगों की संख्या अधिक है। इसलिए लोगों में वंशाभिमान जाग्रत करना खतरनाक है तो भी अमेरिका में नीग्रो के कारण और अफ्रीका में वहां के काले बाशिन्दों के कारण वंशनीति आगे आ रही है और दुनिया का ध्यान खींच रही है ।
अफ्रिका खंड काले लोगों का खंड है। गोरे लोग उसे कृष्णखंड अथवा अंधेरा खंड कहते थे । उन लोगों की रात्रि अथवा कृष्णपक्ष की अमावस सन् १९२५ तक चली। उस साल यूरोपियन लोगों ने अफ्रीका के टुकड़े करके आपस में बांट लेने का एक विराट समझौता किया था मानो बड़े शिकारियों की एक टोली जंगली सूअरों के एक झुण्ड का कत्ल करके आपस में बांट रही हो । उसके बाद गोरे राष्ट्रों में आपस की ईर्ष्या बढ़ गई । और आफ्रिकन लोगों में जागृति, असन्तोष, शिक्षा और जिजीविषा ( जीने की इच्छा) ये चार तत्व बढ़ने लगे। सन् १९२५ तक की अमावस के बाद प्रथम बहुत धीरे-धीरे लेकिन अब जोरों से अफ्रीका का शुक्लपक्ष शुरू हो रहा है। अब उसे अंधेरा खंड न कहते प्रभात का खंड कहना होगा । अगर अफ्रीका के इन काले लोगों में मानवता का विकास हुआ तो उनकी और दुनिया की रियत है। लेकिन अगर उनमें केवल राष्ट्रीयता जाग्रत हुई और गोरों की जैसी विराट वांशिक अस्मिता प्रकट हुई तो सारी दुनिया को 'न भूतो न भविष्यति' ऐसा वंशविग्रह देखना पड़ेगा। और मानवीय संस्कृति का करीब-करीब खातमा होगा । पूंजीवाद और साम्यवाद का आज का संघर्ष इतना भयानक नहीं होगा, जितना जगद्व्यापी वांशिक विग्रह का होगा । इसलिए हमें धर्मनीति और वंशनीति इन दोनों का जागतिक राष्ट्रनीति के साथ-साथ अध्ययन करना
पड़ेगा ।
सब धर्मों में जो शुद्ध धार्मिकता, मानवता, सदाचार, भक्ति और अध्यात्म पाये जाते हैं, उनसे तो मनुष्यजाति का कल्याण ही होगा। लेकिन धर्मनीति में इनकी बात कम सोची जाती है। मुस्लिम लीग ने हिन्दू सभा ने, अरब लीग ने अथवा यहूदियों की झायोनिस्ट मूवमेण्ट ने सदाचार, ईश्वरनिष्ठा, धर्मपरायणता और अध्यात्म का विचार आगे नहीं रखा है। वहां तो अपनी-अपनी जमात का सामर्थ्य और प्रभाव बढ़ाने की
बात है।
इसलिए धर्मनीति के अध्ययन में ईश्वर भक्ति, सन्तोष, परोपकार और निःस्वार्थ सेवा का चिन्तन करने से नहीं चलेगा । उसमें तो मिल्लत, जमात, क्रिस्सेनडॉम आदि गुटों के अभिमान का, संगठन का, पसंदगीनापसन्दगी का और गैरों के द्वेष का प्रभाव कितना है, वही देखना है।
I
हम सबसे श्रेष्ठ हैं, दूसरे हमसे कम हैं, कमीने हैं, तुच्छ हैं ऐसे खयाल से जो होड़ चलती है, उस होड़ को संस्कृत में अहंश्रेयसी कहते हैं। आज सारी दुनिया में यह अहंबेयसी ही चलती है। जबतक यह बुखार उतरा नहीं है, तबतक मानवता, विश्व बन्धुत्व और सर्वोदय का वायुमण्डल जम नहीं सकेगा। राष्ट्रनीति, धर्मनीति और वंगनीति में और अर्थनीति में भी चलती हुई अहं यसी ही दुनिया का सबसे बड़ा सवाल और सबसे बड़ा रोग है और सर्वोदय की भावना ही भवरोग नाशक दवा है।
२५८ / समन्वय के साधक