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________________ समय-समय पर धर्म-साधना कुछ बदल भी सकती है। मामूली जीवन में हम देखते हैं कि बचपन की अभिरुचि अलग होती है । उम्र बदलने से, जीवन का विकास होने पर अभिरुचि गहरी, उत्कट और व्यापक बनती है । चंद लोग एक-एक करके जीवन के सब पहलुओं का साधना की दृष्टि से अनुभव करते हैं । बौद्धधर्म में एक-एक सद्गुण का क्रमशः विकास करने का जो जिक्र आता है उसका वर्णन भले ही यांत्रिक-सा दीख पड़े, धर्म साधना की क्रमिकता का उसमें स्वीकार है । इन सद्गुणों के उत्कर्ष को वे "पारमिता " कहते हैं । (e) इसलिये सब धर्मों को मिलाकर हम एक परिवार बना सकते हैं। सब धर्मों का जिसमें अंतर्भाव है, ऐसे विशाल, व्यापक धर्म-कुटुम्ब को ही हम सार्वभौम सनातनधर्म कह सकते हैं। सच देखा जाय तो हिंदू धर्म इस विराट् सार्वभौम सनातनधर्म की एक शाखा ही है । सब शाखाएं मिलाकर हम महानवृक्ष का साक्षात्कार कर सकते हैं । विश्व समन्वय में सब धर्मों का इस तरह का स्वीकार है । इसलिये इसके दरबार में हरएक पंथ का आदमी केवल अपने धर्म की बातें नहीं करेगा, दूसरों के धर्म में कौन-कौन-सी बातें अच्छी लगीं उसका जिक करके उसके प्रति प्रेमादर बढ़ाएगा । इतना करने के बाद कहीं भी संघर्ष नहीं रहेगा । परस्पर परिचय के बाद आत्मीयता बढ़ेगी। आत्मीयता के कारण उत्तम सहयोग स्थापित होगा । सब धर्म के, सब वंश के, सब देशों के और भिन्न-भिन्न संस्कृति के लोग एकत्र आकर विश्व समन्वय को बुलंद करेंगे। जागतिक रोग का सांस्कृतिक इलान आजकल दुनिया में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति ही प्रधान है। इस राजनीति पर अंकुश लाने का काम यूनाइटेड नेशन्स ओर्गेनीजेशन (यूनो) कुछ हद तक कर रहा है। किन्तु उसी के वायुमण्डल का कुछ ठिकाना नहीं है। 1 इस जगद्व्यापी अथवा जागतिक राजनीति पर असली प्रभाव है अर्थनीति का दुनिया के छोटे-बड़े सब देश अपना आर्थिक सामर्थ्य बढ़ाने की कोशिश में रहते हैं । हरएक देश का परम पुरुषार्थ अधिक-से-अधिक अर्थसमर्थ बनाने का ही है। इस प्रधान उद्देश के बाद दूसरा उद्देश आता है अर्थ वितरण का यानी राष्ट्र की सम्पत्ति न्याय के अनुसार अधिक से अधिक लोगों में कैसी बांटी जाय और अपने-अपने देश में से दारिद्र्य, भूख और धनी - गरीब का भेद कैसे कम किया जाय, इसी चिन्ता का रहता है । दुनिया का तीसरा विचार गोरे, पीले, काले और गेहुए रंग की जातियों में जो खींचातानी है, इसके बारे में है। यूरोप, अमरीका की गोरी जातियां अथवा गोरे वंश के लोग सारी दुनिया में सर्वोपरि हैं । इनके खिलाफ एशियाई और अफीकी जाग्रत होकर चाहे जितना जोर करते होंगे, तो भी वैज्ञानिक, आर्थिक, राजनैतिक और सामरिक सामर्थ्य आज भी इन गोरों का ही सर्वोपरि है । और इससे भी बढ़कर यह कबूल करना पड़ेगा कि राजनैतिक दूरदृष्टि और परिपक्व चातुरी में ये गोरे ही सबसे आगे हैं । इन लोगों का प्रधान धर्म है — ईसाई धर्म । ईसाई धर्म में प्रोटेस्टंट, केथोलिक, ग्रीक चर्च आदि प्रधान २५६ / समन्वय के साधक
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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