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________________ हिन्दुस्तानी प्रचार सभा ने सोचा कि केवल भाषा की चर्चा अथवा नवशैली की निर्मिति में लोगों का सहयोग कम मिलता है। इसलिए इस विषय की गहराई में जाकर सर्वधर्म-समभाव अथवा उसीके व्यापक रूप में विश्व समन्वय के ऊपर सर्वशक्ति केन्द्रित की जाय। वैसा मैं थोड़ा-बहुत करता आया भी हूं। लेकिन आयंदा 'मंगल प्रभात' मानो विश्व-समन्वय का ही मुख पत्र हो ऐसे भाव से इस समन्वय विषय के भिन्न-भिन्न विषय पर ही ज्यादातर लिखने की कोशिश करूंगा। सच तो ऐसा समन्वय केवल चर्चा का विषय नहीं है। जीवनव्यापी चीज को ही समन्वय समझना चाहिए। इसीका प्रयत्न हम आयंदा विशेष रूप से करेंगे। सब धर्मों का एकीकरण करके, सर्वत्र चल सके ऐसा एक सार्वभौम 'समन्वितधर्म' चलाने का हमारा प्रयत्न नहीं है। हम जानते हैं कि जो बड़े-बड़े धर्म दुनिया में विशाल विस्तार में चल रहे हैं उनकी प्रतिष्ठा कभी बढ़ेगी कभी घटेगी, लेकिन ये सारे धर्म दीर्घकाल तब चलनेवालें हैं ही। हम तो इन धर्मों के बीच जो प्रकट या छिपा वैमनस्य है, परस्पर विरोध है, अलगाव है उसे दूर करके सब धर्मसमाजों को सामाजिक व्यवहार में एक-दूसरे के नजदीक लाना चाहते हैं, जिससे इन धर्म-समाजों में भाईचारा बढ़े, सहयोग बढ़े और आखिरकार सब प्रधान धर्मों में पारिवारिक सम्बन्ध स्थापित हो जाय। हजारों वर्ष के इतिहास से हम देख सके हैं कि चमड़ी के रंग के भेद के कारण मानव-जाति अनेक महावंशों में बंट गई है। यूरोप, अमरीका के गोरे लोग, अफ्रीका के काले लोग, अमरीका के मुद्दी-भर लाल आदिवासी जिन्हें (रेड इंडियन कहते हैं) चीन, जापान के पीले लोग, अपने को अलग-अलग महाजाति मानते हैं। यह वंशभेद बड़ा तीव्र है। इनमें आपस में शादियां नहीं होतीं। लोग ऐसी शादियां पसंद भी नहीं करते। सारी मानवजाति मानो वंशभेद को कायम रखने पर तुली हुई है। इनमें यूरोप, अमरीका के गोरे लोग सबसे अधिक अभिमानी, मगरूर और तुमाखी हैं। ये गोरे लोग अफ्रीका के काले लोगों को दबाना चाहते थे। दीर्घकाल तक अफ्रीकन लोगों को पकड़कर गुलाम बनाकर उन्हें जानवरों की तरह रखने का और उनसे मारपीट कर काम लेने का प्रयोग भी इन गोरे लोगों ने किया। लेकिन यह प्रयोग आखिरकार महंगा साबित हुआ । गोरे लोगों में ऐसे भी सज्जन पैदा हुए जिन्होंने गुलामी प्रथा का घोर विरोध किया, आखिरकार अफ्रीका के काले लोग गुलामी की हालत से मुक्त हो गये। अब अफ्रीका के काले लोग धीरे-धीरे सिर ऊंचा कर रहे हैं। तो भी गोरे लोगों का वर्णाभिमान दूर नहीं हुआ है। गोरे लोग चीन, जापान आदि ऐशियायी देशों के पीले लोगों की बढ़ती हुई प्रचंड संख्या देखकर डर जाते हैं। उधर गोरे लोगों का आतंक दुनिया के सब खंडों पर फैला है। इसके कारण गरगोरे लोग त्रस्त हैं। तो भी गोरे लोगों ने दुनिया पर हो-हल्ला मचाया है कि चीन, जापान आदि देशों में पीले लोगों से दुनिया को खतरा है। मौके-बेमौके ये गोरे लोग पूरब के पीले संकट की, चिल्लाहट करते हैं। ईश्वर की कृपा है कि भारत में काले, गोरे, पीले, गेहूंवर्णी सच तरह के लोग एकत्र रह रहे हैं। हमारे यहां वर्णविद्वेष चल ही नहीं सकता। क्योंकि एक ही जाति में और एक ही धर्मससाज में गोरे, काले, पीले, गेहूंवर्णी लोग पाये जाते हैं। ___ अब दुनिया ने वंश-भेद और वंश-विद्वेष की जाहिरातौर पर चर्चा करना छोड़ दिया है। वर्ण-विद्वेष दूर नहीं हुआ है। दब गया है। लोग दूसरे-दूसरे कारण आगे करके वर्ण-विद्वेष छिपाने की कोशिश भी करते ऐसी स्थिति में दुनिया के सयाने अनुभवी इतिहासवेत्ता मानवप्रेमी लोगों ने सूत्र चलाया है, "चमड़ी का रंग कैसा भी हो, वंश-भेद भले ही पुराना हो लेकिन हमें भूलना नहीं चाहिए कि सब महावंश, महाजातियां मिलकर एक विशाल मानव-कुटुम्ब बनता है। दुनिया में कहीं भी जाइये इस मानव-प्रेमी सूत्र का विरोध कोई २५० / समन्वय के साधक
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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