SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ में भी उपनिषदों ने भेद बताया है— कृपण और ब्राह्मण । हरएक कृपण को ब्राह्मण बनाना, यही है सर्वोत्तम समाज सेवा और विश्वपूजा ।' १. 'उपनिषदों का बोध' से सब धर्मों का एक परिवार जहां देखें समाज की गिरावट की बातें ही सुननी पड़ती हैं। जो लोग गिरावट से दुःखी हैं उनकी संख्या कम नहीं है । करोड़ से भी अधिक हो तो आश्चर्य नहीं । मन में सवाल उठता है कि "क्या गिरावट इतनी जबरदस्त है कि करोड़ से अधिक सज्जन भी इसका कोई इलाज नहीं कर सकते।" अन्दर की आवाज कहती है कि करोड़ नहीं किन्तु पचास लाख लोग भी निश्चय कर दें कि 'जहां तक हमसे हो सके समाज को गिरने नहीं देंगे। गिरनेवालों को और गिरने देनेवालों को उनकी निष्प्राण अक यता में हम साथ नहीं देंगे। कम से कम अपनी ओर से सामाजिक शिथिलता का (नैतिक ढिलाई का ) भरसक विरोध ही करेंगे, तो देखते-देखते समाज की हालत में जरूर कुछ सुधार हो सकेगा । इतना भी याद रखना चाहिए कि जब हम समाज की गिरावट की बात करते हैं और वह भी ऐसी आवाज में कि इसका कोई इलाज नहीं तब हम गिरावट को मजबूत करते हैं। और समाज की लाचारी को अपनी सम्मति भी देते हैं। घर में कोई प्रियजन बीमार पड़े तो हम बीमारी का वर्णन करके अगर कुछ इलाज न करें और रोज कहते चलें कि 'जिस चीज का इलाज नहीं उसे बरदाश्त किये बिना चारा ही नहीं' तो आसपास के लोग हमें डाटेंगे और कहेंगे कि 'आप रोना-सा चेहरा लेकर बैठे क्यों हैं ? जो भी हो सके इलाज तो शुरू कर दीजिये। फिर अगर वक्त रहा तो बीमार की बीमारी का विस्तार से वर्णन करें। पहले इलाज, बाद में चर्चा । हजारों वर्ष का पुराना समाज और वह भी करोड़ों लोगों का बना हुआ उसके अंदर के छोटे-बड़े दोष असंख्य होंगे। दोष, खराबियां और गलतियां चाहे जितनी हों, चाहे जितनी पुरानी भी हों उन्हें दूर करने के लिए हमारे पास मनुष्य-बल भी कम नहीं है। हरएक आदमी किसी एक सामाजिक दोष को सुधारने का जीजान से प्रयत्न करेगा तो उसे संतोष मिलेगा कि हमने अपने हिस्से का प्रयत्न किया। मेरे जैसे असंख्य लोग अपने-अपने स्थान पर डटे रहकर अपने ढंग से सुधार करने की कोशिश करते ही हैं। उनके परिश्रम को सफल बनाने के लिये मुझे अपनी ओर से अपना काम जोरों से करना होगा । अनेक व्यक्तियों के प्रयत्न से जो काम होता है उसकी जोड़ को ही 'ईश्वर प्रयत्न' कहा जाता है। इस जोड़ में अपना हिस्सा अदा करना ईश्वर का ही काम है । [२] अपनी आदत के अनुसार मैं विशाल मनुष्य जीवन के सब पहलुओं पर चिंतन करता आया हूं। और यथासम्भव लिखता भी आया हूं। लेकिन अब उनमें से एक विषय के ही सब पहलुओं का विशेष चिंतन, विवरण और चर्चा करने का सोचा है। विचार चुनी हुई रचनाएं / २४६
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy