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________________ लेकिन गांधीजी जानते थे कि यन्त्रोद्योग आनेवाला है। स्वराज्य होते ही कल-कारखाने बढ़ेंगे और भारत ब्रिटेन, जर्मनी, जापान और अमेरिका का कमोबेश अनुकरण करेगा। गांधीजी को यह पसन्द नहीं था। लेकिन वे जानते थे कि इस बाढ़ को रोकना नामुमकिन है। उन्होंने यह भी देखा कि स्वराज्य के साथ अगर देश में समाजसत्तावाद आ गया और सरकार ही बड़े कल-कारखाने चलायेगी तो पूंजीवाद के द्वारा होनेवाला गरीबों का शोषण टल जायेगा। इसलिए उन्होंने अपने मन में एक समझौता मंजूर किया। खेती के बाद सबसे बड़ा उद्योग है वस्त्रनिर्माण का। अगर वह उद्योग ग्रामीण जनता के हाथ में रहा तो ग्रामीण जनता की खैरियत है। इसलिए उन्होंने चाहा कि सरकार और जनता खादी-ग्रामोद्योग के बारे में उभयमान्य नीति का स्वीकार करें। फिर लोहा आदि बाकी के बड़े-बड़े उद्योग समाजवादी स्वराज्य सरकार भले ही यन्त्रोद्योग के रूप में चलावे। नेहरू राज्यकाल में देशी और विदेशी पंजी के सहयोग से और दोनों के सम्मिलित संगठन से बहत से कल-कारखाने शुरू हुए हैं और नये-नये शुरू हो रहे हैं। अगर इनमें अपेक्षित सफलता मिली तो देश का स्वावलंबन और आर्थिक सामर्थ्य बढ़ेगा।औद्योगिक कल-कारखाने बढ़ने से वैज्ञानिक प्रगति होती ही है, जिसके द्वारा होनेवाला जीवन-परिवर्तन अपरिहार्य है। लेकिन बड़े-बड़े कल-कारखाने चाहे जितने बढ़े, उनके द्वारा गांवों में रहनेवाली करोड़ों की संख्यावाली जनता की बेकारी और 'अल्पकारी' तुरन्त दूर होनेवाली नहीं है। इसलिये यन्त्रोद्योग और ग्रामोद्योग दोनों के लिये इस वक्त देश में स्थान है। तब दोनों के बीच संघर्ष क्यों करें? गांधीजी का जीवन-तत्त्वज्ञान जिन्हें पूर्णतया मान्य है, वे अपनी पूरी शक्ति ग्रामोद्योगों के विकास के लिये लगावें और स्वराज्य सरकार पूरी उदारता से उन्हें सब तरह की मदद दे। इस तरह राष्ट्र की औद्योगिक नीति दो धाराओं में बहेगी। स्वराज्य सरकार और उद्योगपति बड़े-बड़े कल-कारखाने चलायेंगे और देश की औद्योगिक आर्थिक सामर्थ्य बढ़ायेंगे। साथ-साथ विज्ञान का प्रचार भी होगा। ____ दूसरी धारा गांधीजी के अनुयायी सर्वोदयवादी, रचनात्मक कार्यक्रम चलानेवाले सेवकों के द्वारा बहेगी, जिसके फलस्वरूप बेकारी-अल्पकारी दूर होगी। कौशल्य, स्वावलंबन और ग्रामीण सहयोग की तालीम भी बढ़ेगी। इस दोहरी नीति को समझौता कहें या सहयोग, काफी समय तक चलाना ही पड़ेगा। लेकिन वह भारत की स्थायी या अन्तिम नीति नहीं होगी। इसके बारे में विस्तार से सोचना होगा। आज हम इतना ही कहेंगे कि यन्त्रोंद्योगों के द्वारा विज्ञान और संगठन की मदद से सारी दुनिया का जो औद्योगीकरण आज दो सौ बरस से हो रहा है, उसकी मर्यादा अगले १०० बरस में आनेवाली हैं। जब एशिया के और अफ्रीका के सब देशों का एक-सा औद्योगीकरण का सारा स्वरूप ही बदल जायेगा और समाज की नवरचना-आमूलाग्र नवरचना सोचनी पड़ेगी। उसके बारे में स्वतन्त्र रूप से सोचना पड़ेगा। इस वक्त तो गांधी जयन्ती के साथ गांधीनीति, नेहरू-नीति और भारत की भविष्य की नीति के बारे में सोचना जरूरी है। इस लेख में मुख्य-मुख्य बातें आ गई हैं तो भी देश-रक्षा की नीति, भाषा और साहित्य की नीति और भावनात्मक एकता का सवाल इन मुख्य विषयों पर ही गांधी जयन्ती का चिन्तन प्रकट करना होगा। विचार: चुनी हुई रचनाएं | २३७
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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