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उतना एशिया और अफ्रीका के किसी भी देश पर नहीं हुआ है। (जापान का अपवाद सब जानते हैं, लेकिन भारत जैसा पराधीन था वैसा जापान कभी भी पराधीन नहीं था।)
गांधीजी जानते थे कि अंग्रेजों के जाने पर देश का नेतृत्व अंग्रेजी जाननेवाले और अंग्रेजी शिक्षा के असर नीचे पले हुए नेताओं के हाथ में ही आनेवाला है। उनके सामने पालियामेण्टरी सेल्फ गवर्नमेण्ट यानी लोक-नियुक्त स्वराज्य का आदर्श रहेगा। कांग्रेस के द्वारा उसीके लिए देश को तैयार करना है।
गांधीजी ने अपने कार्यकाल में बहुधर्मी भारत के सामने सर्वधर्मसमभाव का आदर्श रखा, उसके लिए उन्होंने साधना यानी कोशिश भी काफी की। उसका असर हिन्दूसमाज पर बहुत अच्छा हुआ। ईसाई, पारसी, यहूदी आदि लोगों पर भी उसका अच्छा असर हुआ। लेकिन मुस्लिम लीग के सामने गांधीजी हार गये। इसलिए गांधीजी को कांग्रेस का ही धर्मनिरपेक्षता का आदर्श कबूल करना पड़ा। गांधीजी के पहले दादाभाई नौरोजी, रानाडे, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी जैसे मनीषियों ने जो धर्मनिरपेक्ष राजनैतिक आदर्श चलाया था, वही जवाहरलालजी को भी सब तरह से अनुकूल था।
अब रही भारत की औद्योगिक और अर्थनीति की बात ।
इसमें गांधीजी का सारा प्रयत्न स्वावलंबन का, भारतीय संस्कृति-निष्ठा का और मानवीय अन्तिम कल्याण का था। इस बात को स्पष्ट करना जरूरी है।।
गांधीजी जानते थे कि यूरोप-अमेरिका का शुद्ध अनुकरण करने की भारत की इच्छा रही तो भी अंग्रेजों का राज है तबतक वे इस नीति को सफल होने नहीं देंगे। रूई पैदा करनेवाले भारत को कपड़े की मिलें चलाने में कितनी कठिनाई सहन करनी पड़ती थी, इसका साक्षी भारत का इतिहास है। भारत ने अपने जहाज चलाने की प्राणपण से कोशिश की, लेकिन अंग्रेजों ने बड़ी क्रूरता से उस प्रयत्न को दबा दिया।
ऐसे अनुभव के कारण ही गांधीजी ने सोचा कि औद्योगिक उन्नति के लिए सरकार की और धनिकों की मदद के बिना प्रजाकीय कौशल्य, प्रजाकीय संकल्प और प्रजाकीय संगठन के द्वारा जो हो सके वही करना चाहिए। इससे दो बड़े लाभ होंगे। (१) देश के हुनर-उद्योग और कारीगरी मरते-मरते बच जायेगी, गांववालों को रोजी मिलेगी, और (२) जनता की स्वावलंबी संगठन-शक्ति जाग्रत होगी।
अंग्रेजों का विरोध और धनिकों की उदासीनता होते हुए भी 'स्वदेशी' के बल पर ग्रामोद्योगों का संगठन करना, यही होगी स्वराज्य की उत्तम तैयारी।
यह हुआ एक उद्देश्य । दूसरा और तीसरा उद्देश्य दोनों सांस्कृतिक थे। प्राचीन काल से भारत ने हाथकारीगरी में और ग्रामोद्योगों में लोकोत्तर प्रवीणता हासिल की थी। यहां तक कि भारत का माल दूर देशों तक जाता था और वहां से इतना धन भारत में आता था कि लोग भारत को सुवर्णभूमि कहते थे। अंग्रेजों ने ईस्ट इण्डिया कंपनी के द्वारा हमारे ग्रामोद्योगों को कुचल डाला और यन्त्रोद्योगों से हाथकारीगरी को भी खतम किया । स्वदेशी के आंदोलन के द्वारा यह सारा नुकसान धो डालने की बात थी।
___ और तीसरे उद्देश्य के पीछे गांधीजी की आध्यात्मिक, आर्थिक और राजनैतिक दूरदर्शिता थी जिसका महत्त्व आज नहीं, किन्तु ५० या १०० बरस के बाद ज्यादा स्पष्ट होगा।
यन्त्रोद्योग के साथ बड़े-बड़े कल-कारखाने तैयार होते हैं, पूंजीवाद खड़ा होता है। पारतन्त्र्य जितना विनाशक है, उतना ही पूंजीवाद द्वारा होनेवाला गरीबों का शोषण भी भयानक विनाशक होता है। स्वराज्यप्राप्ति के साथ अगर पूंजीवाद का भी खतरा दूर हुआ तभी गरीब लोग सुखी होंगे और स्वराज्य कल्याणकारी सिद्ध होगा।
इसलिए गांधीजी ने खादी और ग्रामोद्योग पर इतना भार दिया और अपनी सारी शक्ति लगाई।
२३६ / समन्वय के साधक