SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पास गांधी विचार कितना सिलक (शेष) है, कितना जीवित है और आगे देश की नँया को किस ओर ले जाना है । जब जवाहरलालजी जीवित थे, देश ने अपनी बागडोर उनके हाथ में सौंप दी और विशेष सोचे बिना विश्वास रखा कि उनके हाथ में भारत का भविष्य सब तरह से सुरक्षित है । गांधीजी का कार्य जो लोग आगे चलाते थे और जिनको जनता गांधीवादी के नाम से पहचानती है उन लोगों में से किसीने भी जवाहरलालजी की नीति का कहीं भी विरोध नहीं किया। हालांकि वे जानते थे कि गांधीजी की नीति और गांधीजी के कार्यक्रम में और जवाहरलालजी की नीति और कार्यक्रम में मौलिक भेद और अन्तर है । कारण स्पष्ट है । गांधीजी ने ही सब बातें सोचकर जवाहरलालजी को ही अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था । जवाहरलालजी निर्मल चारित्र्य के, प्रामाणिक, ईमानदार व्यक्ति थे । उन्होंने जब गांधीजी का नेतृत्व मंजूर किया, तब उसके पहले और उसके बाद भी उन्होंने अपने विचार कभी भी छिपाये नहीं थे । गांधीजी के साथ उनका कहां-कहां और कितना मतभेद है, उन्होंने साफ किया ही था । खानगी में और जाहिरा तौर पर अपने भाषणों में, लेखों में और किताबों में उन्होंने अपने विचार अनेक बार स्पष्ट किये थे । अर्थशास्त्री श्री के० ० शाह के नेतृत्व में उन्होंने भारत की अर्थनीति का चित्र तैयार करने के लिए एक समिति भी मुकर्रर की थी। गांधीजी यह सबकुछ जानते थे और जानकर ही उन्होंने जवाहरलालजी को देश का नेतृत्व सौंप दिया । कारण स्पष्ट है । जवाहरलालजी की भारतनिष्ठा, स्वराज्य प्राप्ति की तमन्ना और भारत के उद्धार के लिए जिस क्रान्ति की आवश्यकता है, उसे लाने के लिए अपना और देश का सर्वस्व अर्पण करने की तैयारी, इन तीन बातों में गांधीजी और जवाहरलालजी एक-दूसरे के निकटतम साथी थे । चारित्य की ईमानदारी और निर्भयता दोनों में एक-सी थी। यही कारण था कि अनेक तरह के स्वभाव-भेद, विचार-भेद और आदर्श-भेद होते हुए भी जवाहरलालजी ने गांधीजी को सिरछत मान लिया। दोनों के बीच पिता-पुत्र के जैसा संबन्ध ही कहेंगे । गांधीजी ने भारत की हजारों बरस की आध्यात्मिक संस्कृति का निचोड़ दो शब्दों में दुनिया के सामने रख दिया था : सत्य और अहिंसा । निष्कपट चारित्य और मानव हितकारी शांतिनिष्ठा । गांधीजी की व्यक्तिगत अध्यात्म-निष्ठा, सत्य और अहिंसा इन दो शब्दों में व्यक्त होती । जागतिक इतिहास के अध्ययन के फलस्वरूप जवाहरलालजी भी इन दो सिद्धांतों पर आरूढ़ हुए थे : निष्कपट, निर्मल चारित्य और उदाक्त जागतिक शान्तिनिष्ठा और युद्ध विरोध । गांधी और जवाहरलाल के बीच यह सबसे बड़ा साम्य था । केवल साम्य नहीं, अद्भुत ऐक्य था । इसी कारण जवाहरलालजी को भारत की नँया के लिए कर्णधार बनाया था । कूटनीति नहीं, किन्तु पक्षपातरहित प्रकटनीति, युद्ध-विरोधी जागतिक शान्तिनिष्ठा और आत्मनिष्ठा से प्रेरित निर्भयता, यही रही जवाहरलाजी की भारतनीति की मजबूत बुनियाद । गांधीजी कहते थे कि उनका सारा प्रयास ग्रामराज्य के द्वारा रामराज्य की स्थापना के लिए है । लेकिन वे जानते थे कि सारे देश ने उस आदर्श को अपनाया नहीं था । भारतीय संस्कृति रामराज्य की स्थापना के लिए चाहे जितनी अनुकूल हो, पिछले ३००-४०० बरस का इतिहास उसके लिए पूरा अनुकूल नहीं था। गांधीजी जानते थे कि पठान और मुगलों के राज्यकाल में भारत ने जो अनुभव प्राप्त किया उससे अधिक अनुभव पोर्टूगीज, फ्रेन्च, ब्रिटिश के संपर्क से भारत ने प्राप्त किया है। यूरोप का असर भारत पर जितना हुआ, विचार: चुनी हुई रचनाएं / २३५
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy