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अब चंद जबरदस्त लोग चाहते हैं कि आसपास के सब लोग उनके कहे अनुसार चलें और दबकर रहें, ऐसा नहीं किया तो तुरन्त उनका द्वेष करने लगते हैं। उनका सूत्र है-दोज हू आर नॉट अण्डर अस, वी टेक दैम टु बी अगेन्स्ट अस । यह तो साम्राज्यवादी सूत्र हुआ। ऐसों का द्वेष उनके लिए और दुनिया के लिए शापरूप है।
द्वेष करनेवाले दर्जनों का और भी एक प्रकार है। ये लोग अन्याय, अत्याचार करना चाहते हैं। दुनिया को लूटना, दबाना चाहते हैं और ऐसे कुकर्म में लोगों की मदद चाहते हैं । मदद देने से जो लोग इन्कार करते हैं, उनका भी ये लोग द्वेष करते हैं।
द्वेष करने का और एक क्षेत्र रह गया।
जिनका नुकसान हम करना चाहते हैं अथवा सकारण या निष्कारण जिनका विरोध करने की हमारे मन में तीव्र इच्छा रहती है, लेकिन ऐसा करने की ताकत या हिम्मत नहीं है, उनका द्वेष करना, उनको गालियां देना, 'तुम्हारा सत्यानाश हो' कह करके उनको शाप देना और उनकी निन्दा करते रहना, यह भी द्वेष का एक निर्वीर्य किन्तु उत्कट प्रकार है।
ऐसे द्वषों से किसी का भी लाभ नहीं है; हानि ही है।
जिसका हम द्वेष करते हैं उनका नुकसान हो या न हो, द्वेष करनेवाले हम लोगों का नुकसान तो जरूर होता ही है ।करनेवाले का अधःपात होता है। उसका लह जल जाता है। इस तरह द्वेष असामाजिक, अकल्याणकारी और अनुन्नतिकारी तत्त्व है।
गीता कहती है कि सबसे पहले सब भूतों के प्रति द्वेषभाव छोड़ दो। अद्वेषवृत्ति रखो। उसके बाद मैत्री का उदय होगा। तुम्हें सबों के प्रति अद्वेषभाव रखना है, मैत्री रखनी है और दुखी लोगों के प्रति करुणा।
यह सब तब होगा, जब मनुष्य साधना के द्वारा अपने लोभ को जीत लेगा, अहंकार को जीत लेगा, सुख-दुख से परे रहने के लिए तितिक्षा बढ़ायेगा, और प्रमादी लोगों के प्रति उदारता से क्षमावान बनेगा।
इस एक श्लोक में अहिंसा की पूरी साधना आ जाती है। ऐसी साधना का प्रारंभ अद्वेष से करना है। अद्वेष-दर्शन ही अहिंसा-दर्शन की कुंजी है।
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गांधीनीति का भविष्य
गांधी जयन्ती हर साल आती है और ओती रहेगी। धीरे-धीरे दूसरी जयन्तियों की तरह यह भी एक रिवाज हो जायेगा। लेकिन इस साल गांधी जयन्ती का विशेष महत्त्व है, दो कारणों से।।
एक कारण यह यह है कि सन् १९६६ में भारतमाता और सारी दुनिया गांधी-जन्म-शताब्दी बड़ी धूमधाम से नहीं, किन्तु किसी-न-किसी दृढ़ संकल्प से मनानेवाली है। उसकी तैयारी अबकी गांधी जयन्ती से शुरू होगी। पांच साल के अन्दर देश में ऐसा कुछ काम करना है कि गांधी-जन्म-शताब्दी तक भारत की जनता न केवल गांधी-विचार की नये सिरे से दीक्षा लेगी, किन्तु ठोस कार्य भी शुरू करेगी।
दूसरा कारण कुछ नजदीक का है। गांधीजी के राजनैतिक उत्तराधिकारी भारत के जवाहरलाल के देहान्त के बाद आनेवाली यह पहली ही गांधी जयन्ती है। जवाहरलालजी के जाने के बाद चार महीने देश ने काफी संकट के देखे, काफी मनोमन्थन किया। अब हमें सोचना है कि जवाहरलालजी के जाने के बाद हमारे
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