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________________ शहर से इण्टरलॉकन तक फैले हुए थूनरसी सरोवर के दक्षिण किनारे से हम गए और उत्तर किनारे से वापस आये। इससे सरोवर की एक उलटी प्रदक्षिणा पूरी हुई और इतना रमणीय दृश्य देखने को मिला कि मेरे जैसे को भी कहने का मन हुआ कि "आज का दिन धन्य है !" __बर्न राजधानी का नाम रीछ पर से पड़ा है, और सचमुच इन लोगों ने राजधानी के बीच में ही एक जगह पर कई रीछ पाले हैं। बर्न से थून तक दोनों ओर खेती, बगीचे, उपवन और पहाड़ों की शोभा अनोखी है। २८ किलोमीटर का यह प्रदेश सचमुच आह्लादक है। यहां की नदी के कारण इस प्रदेश की शोभा में वृद्धि हुई है, ऐसा कहने के बदले यह कहना चाहिए कि यहां के लोगों ने अपने रसिक पुरुषार्थ से गरीब-सी आर नदी को सौन्दर्यवाहिनी बनाया है ! सौन्दर्य की इतनी उत्कटता पहुंचने के बाद ही उसके आधार-रूप कुदरत ने थूनरसी सरोवर की शोभा उठाई। पानी का रंग इतना गहरा, शीतल और चमकीला नीला है, मानो वाल्मीकि की प्रतिमा ही छलकती हो। हमने दक्षिण का रास्ता लिया। सरोवर के उस पार की टेकरियां और उसपर चढ़ते फर्न के पौधे देखतेदेखते हम आगे बढ़े। हमारे सामने यानी आग्नेय दिशा से ऊंचे-ऊंचे पहाड़ भय दिखाते थे। शिखर इतने ऊंचे कि वहां कुछ उगे ही नहीं, और पहाड़ की बाजू भी दीवार की तरह इतनी सीधी और ऊंची है कि वहां भी अमुक जगह पर पेड़ टिके ही नहीं। हमारा स्थानिक सारथी फ्रेन्च, जर्मन और इटालिन भाषाएं जानता था। लेकिन अंग्रेजी से उसका परिचय नहीं के बराबर था। हमने उससे पूछा, "क्या वह युंग फो का शिखर दिखाई दे रहा है ?" उसने कहा, "सामने जो सुन्दर हिमाच्छादित शिखर दिखाई देता है, वह नहीं, किन्तु वहां से बाईं ओर, उन बादलों के पीछे यंग फ्रो का शिखर है। आगे आकाश को भी बींधनेवाला एक दूसरा शिखर नजर आया । हमने पूछा, "क्या यह युंग फ्रौ है ?" उसने कहा, "एक तरह से कहा जा सकता है, क्योंकि यूंग फ्रो के तीन शिखर हैं। उनमें से यह ठेठ पूरब की ओर का है। जिस शिखर पर मुसाफिर आफीन (मुग्ध) हो जाते हैं, वह उस बादल से पीछे है।" अब तो इस अवगुंठनवती पार्वती का दर्शन करने के लिए हमारा मन बेचैन हो उठा। बाकी के सब शिखर प्रसन्नता से दर्शन देते हैं । और यही प्रमदा घूघट खींचकर क्यों खड़ी है ? ऐसा सोचते-सोचते हम इण्टरलॉकन पहुंच गए। चि० सरोज बीस साल पहले अपने पिता के साथ यहां आई थी और उसने दो टेकरियों के बीच से यंग फ्रौ के दर्शन किये थे। उसकी सूचना के अनुसार हमारा सारथी हमको ठीक उसी जगह पर ले गया। अब यंग फो ने अपना घंघट इधर-उधर खिसकाना शुरू किया, और अन्त में हमें दर्शन का आनन्द दिया ही। यहां के बहुत-से शिखर १० से १२ हजार फुट की ऊंचाई के हैं। सूरज की किरणों के साथ खेलनेवाले बादल हर वक्त इन शिखरों पर नया-नया प्रकाश डालते हैं। इसलिए, इस सनातन स्थावर शिखरों की शोभा में नित्य नतन लावण्य दिखाई देता है। कभी लगता है कि यहां बरफ का एक किला है। कभी लगता है वहां गंधर्वो का एक राजमहल है। यहां के कवियों ने इन पहाड़ों की शोभा को अनेक तरह से गाया होगा। लेकिन हम उनकी भाषा नहीं जानते। मैंने तो सर वॉल्टर स्कॉट के वर्णन ही पढ़े हैं, जिसमें उसने स्कॉटलैंड के पहाड़, सरोवर और वहां की दन्त-कथाओं को संभालकर रखनेवाली गुफाओं को अमर किया है, लेकिन कवियों ने जिस वस्तु का वर्णन किया है, वह प्रत्यक्ष वस्तु ही मेरे हृदय में काव्यवृत्ति जमा रही थी। उसका वर्णन मैं न कर सका, तो क्या ? उससे मेरा आनन्द कुछ छिछला नहीं होता। ___ सरोवर के दोनों किनारे पर मनुष्यों ने असंख्य घर बनाये हैं, किन्तु वे इस तरह बनाये हैं कि सरोवर की शोभा जरा-सी भी बिगड़ती नहीं। इतना ही नहीं, अपितु यह घर यहां जगह-जगह पर उगे न होते, तो सरोवर की शोभा में कुछ कमी ही रह जाती, ऐसा महसूस हुए बिना नहीं रहता। २२६ / समन्वय के साधक
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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