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चित होने की दिलचस्पी रहती थी। भूतकाल को जीवित किए बिना मुझसे रहा नहीं जाता था और लोग भी मेरी इस शक्ति से सन्तोष पाते थे ।
अब इन चीजों के प्रति न मालूम क्यों, मैं उदासीन हुआ हूं। मुझे लगता है कि यह काम अब और कोई करेगा और ज्यादा ठीक ढंग से करेगा । ऐसा थोड़ा-बहुत काम दूसरों ने किया भी होगा, और न किया हो, तो भी क्या ? पुराणों में, साहित्य में और इतिहास में जितनी मानवता प्रतिबिंबित हुई है, उससे भी बहुत कुछ विशाल मानवता प्रतिबिम्बित होने को बाकी है । इस भविष्य की मानवता का अब मैं उपासक बना हूं ।
आज यहां के ऐतिहासिक संग्रहालय में गया था । इस छोटे से स्विट्जरलैंड ने एक खासा सुन्दर संग्रहालय बनाया है। उसकी रचना भी सुन्दर है। दीवार पर बड़े-बड़े गलीचे जैसे कपड़े पर पुराने ऐतिहासिक युद्ध और बलिदान के चित्र बने हुए हैं । उसमें स्विट्जरलैंड का उज्ज्वल से उज्ज्वल इतिहास चित्रित हुआ है । यह सब कला और इतिहास की दृष्टि से देखकर प्रभावित होते हुए भी मेरे मन में एक विचार आया कि मनुष्यमनुष्य को इस तरह अगर हैरान न करता, तो न चलता ? किसलिए युद्ध और 'धार्मिक' छल होना चाहिए ? ईसा के क्रुसिफिकेशन (सूली) के चित्र तो जहां-तहां नजर आते थे। यह देखकर मुझे उस वचन का स्मरण हुआ कि "यूरोप के लोगों ने एशिया के एक सत्पुरुष का अपने गुरु के तौर पर स्वीकार किया और माना कि इस प्रकार उन्हें एशिया के दूसरे सब लोगों को गुलाम बनाने का अधिकार मिला।" लेकिन उस बचन का महत्व अब कम हुआ है । अब तो यूरोप अंदरूनी झगड़ों से ही पीड़ित है और भविष्य के बारे में बेचैन हुआ है । दो महायुद्धों के अनुभव से यहां की जनता त्रस्त हुई है और अब युद्ध कैसे टाला जाय, इसीका चिन्तन कर रही है। और फिर भी, यहां की जनता के मुंह पर कहीं भी गमगीनी नजर नहीं आती । जीवन का आनन्द हमेशा अनुभव करते रहना, यही उनका प्रधान धर्म है ।
स्विट्जरलैंड में जब से पांव रखा, तब से आज तक कहीं पर भी गंदगी, कचरा या अव्यवस्था नजर नहीं आई। कहीं पर भी परती जैसा नहीं लगता । कोई भी चीज अनुपयोगी नहीं लगती । स्वच्छता, व्यवस्था यह देश है। हवा में न धूल है, न धुआं । सैकड़ों मील लम्बे रास्ते देखे। लेकिन ये सब रास्ते सत्पुरुषों के चारित्र्य जैसे स्वच्छ, सीधे और प्रसन्न दिखाई दिये ।
देश की भूमि का अधिकांश हिस्सा पहाड़ और सरोवरों से व्याप्त है । जो थोड़ी-सी जमीन बची है, उसका यहां के लोग अच्छे से अच्छा उपयोग करते हैं । हम बोलते समय फल और फूलों की बातें करते हैं, • लेकिन हमारे देश में फूल तो देखने को भी नहीं मिलते। यहां पर ऐसा नहीं है। यहां के खेत और बगीचे तो क्या, बड़े-बड़े मकान और हवेलियां भी नीचे से ऊपर तक फूलों से लदी हुई हैं।
इस देश में पांव रखने से पहले ही साढ़े दस हजार फुट की ऊंचाई से आल्प्स के शिखरों का और जिनेवा जैसे सरोवरों का दर्शन किया था। उस जिनेवा सरोवर के किनारे के एक पहाड़ पर के आलीशान मकान में रहकर इस सरोवर का दिन-रात दर्शन, मनन और ध्यान किया था और इस प्रकार आखों की तृप्ति
का समाधान पाया था ।
आज हम इण्टरलॉकन देखने गए । बम्बई में ही हमारे रामकृष्ण बजाज ने सिफारिश की थी कि स्विट्जरलैंड देखने के बाद इण्टरलॉकन देखे बिना नहीं आना । चि० सतीश ने भी यही सिफारिश की थी। कल रात को यहां आते ही भारत के राजदूत श्री आसफअली साहब से मैंने कहा कि इण्टरलॉकन देखना ही है । स्विट्जरलैंड की राजधानी बर्न से पैंतालीस किलोमीटर यानी तीस मील की दूरी पर यह स्थान है ।
न और ब्रिराज नाम के दो विशाल और लम्बा यमान सरोवर के बीच की काव्यमय संयोग-भूमि पर इण्टरलॉकन शहर है और यहां से बर्फ की गांधी- टोपियां पहने हुए अनेक सुन्दर शिखर दिखाई देते हैं । थून
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