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और अपने पढ़ाई के दिनों में ही विद्याथी उसके आदी हो जायं तो सामाजिक क्रान्ति बिना विरोध के हो सके; ऐसा विश्वास इस प्रवृत्ति के पीछे था। 'राष्ट्रीय शिक्षण' यानी केवल राजनैतिक एकता का शिक्षण, ऐसा संकुचित अर्थ हमारे मन में कभी नहीं था।
२६:: पहली जेल-यात्रा और कुरानशरीफ़ का अध्ययन
जब मनुष्य कोई गुनाह करता है यानी 'समाज की नीति के विरुद्ध कुछ करता है, तब समाज की ओर से सरकार उसे कुछ-न-कुछ सजा देती है। सजा में दुःख और नुकसान के उपरांत सामाजिक अप्रतिष्ठा का भी महत्त्व रहता है । इसीलिए मनुष्य सजा से डरता है। समाज की ओर से उसकी प्रतिनिधि-सरकार सजा देती है। समाज का सबसे बड़ा प्रतिनिधि राजा, राजा की शक्ति का संगठन, सरकार अथवा 'राज्यशासन' नामक संस्था द्वारा होता है।
अब कई बार राजा अथवा सरकार अपने विरुद्ध किए गए कामों के लिए भी सजा कर सकती है और उसमें समाज की अप्रत्यक्ष सहानुभूति और मान्यता होती है। सरकार के विरुद्ध कुछ काम किया तो सरकार खूब चिढ़ जाती है और कड़ी-से-कड़ी सजा देती है । सजा पाये हुए आदमी की प्रतिष्ठा भी समाज उससे छीन लेता है। किन्तु जब सरकार जैसी संस्था ही अन्याय करती है, अत्याचार करती है, समाज-हित का द्रोह करती है, तब उस सरकार को अपमानित करने का अहिंसक इलाज गांधीजी ने ढूंढ़ निकाला। यदि सरकार का काम अन्यायी हो, अत्याचारी हो, प्रजा-हित के लिए बाधक हो, तब उस सरकार को जाहिरा तौर से फटकारना, उसकी निन्दा करना और सरकार के प्रति अपना असंतोष तीव्रता से व्यक्त करने के लिए कोई ऐसा कानूनविरोधी काम करना जिसमें अनीति या पाप न हो।
ऐसा कुछ करने से सरकार सजा करेगी, और सजा के लिए हमें अदालत में पेश करेगी, उस समय यदि खुल्लमखुल्ला जाहिर किया जाय कि मैं इनकार नहीं करता। मैंने खुल्लेआम 'इस पापी सरकार, के खिलाफ उसका गुनाह किया है और उसके लिए सरकार जो कुछ सजा करेगी, उसे मैं खशी से भोगने को तैयार हं. तो सरकार क्या कर सकेगी? सजा कुछ बढ़ा देगी, इससे 'गुनहगार' को नुकसान तो होगा, किन्तु उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा टेगी नहीं, बल्कि सरकार स्वयं अप्रतिष्ठित हो जाएगी। इस तरह सजा करने में सरकार को ही सजा होती है। इसका कोई इलाज सरकार के पास नहीं होता। जब अपनी गलती स्वीकार कर अपनी नीति बदले तभी सरकार की आबरू टिक सकेगी।
सरकार पैसों का दण्ड करे वह हम न दें, तो सरकार हमारी वस्तु या जमीन छीनकर उसमें से दण्ड वसूल करेगी, इसके लिए तैयार रहना चाहिए। सरकार जेल में बन्द कर दे, तब वहां घूमने-फिरने की छट नहीं, और सख्त काम भी करना पड़े, इसके लिए हम तैयार रहे तो विजय अपनी ही है।
इस तरह सरकार का सामना करके नैतिक विजय प्राप्त करने की अहिंसक पद्धति को गांधीजी ने सुन्दर नाम दिया-सत्याग्रह। तब सत्याग्रही को सजा करनेवाली सरकार को लोग हत्याग्रही कहने लगे । यह एक अनोखा इलाज था-बिलकुल अहिंसक और पूर्ण नीतियुक्त।
। यूरोप में और अन्यत्र लाचार लोग सरकार का कानून तोड़कर सरकार के खिलाफ सशस्त्र विप्लव करने की ताकत न होने से किसी भी तरह से सामना करके सरकार की सजा अपने पर ले लेते हैं। उसको वहां
बढ़ते कदम : जीवन-यात्रा | १९३