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________________ आचार्य काकासाहेब के साथ मेरी प्रथम भेंट सन् १९३३ ई० के 8 अक्तूबर को उसी दिन हुई थी, जिस दिन वर्धा - आश्रम में महात्मा गांधी से पहली बार मिलने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ था । तब से आजतक परस्पर सम्मान और विश्वास दृढ़ रहे और लगभग अर्ध शताब्दी बीत गई । उस समय वर्धा - आश्रम में वह महात्मा गांधी के सहचारी थे और उनके मंत्री का काम करते थे । काकासाहेब मे अपना कमरा मुझे दे दिया और स्वयं दूसरे कमरे में चले जाने की कृपा की। मुझे प्रतीत हुआ, वह बड़े कृपालु पुरुष है। तब से वर्धा - आश्रम में 'नोघी'होनजान' के अन्तेवासियों को सदा रहने के लिए स्थान मिल गया । द्वितीय विश्व- महायुद्ध के पश्चात महात्मा गांधी की मनोकामना के अनुसार, बिना रक्तपात के अहिंसक क्रान्ति के द्वारा स्वराज्य प्राप्त करके भारत एक महान् राष्ट्र बन गया । वर्धा में संपन्न आश्रम की शान्तिपूर्ण प्रार्थना समस्त विश्व को मानव-जाति के जीवन और विकास को कामनारूपी प्रभा बन गई तथा भारतीय राजनीति साक्षात् विश्व-शान्ति स्थापना में अंतर्राष्ट्रीय मार्गप्रदर्शित आधार बन गई । जापान और भारत दोनों देशों का परस्पर सम्बन्ध पुनः स्थापित हो जाने के उपरान्त, भारत से वर्धा के आश्रमवासियों को जापान में बुलाने के लिए प्रयास किया गया, जिसमें विशेषकर आचार्य काकासाहेब को निमंत्रित किया गया था । आचार्य काकासाहेब का हार्दिक स्नेह जापानी संस्कृति तथा जापान के प्राकृतिक दृश्यों से है और जापानी जनता के प्रति उनमें हार्दिक आत्मीयता भरी है। उन्होंने १२ / समन्वय के साधक
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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