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________________ यात्रा करते-करते अनेक संस्था देखते और तरह-तरह के विचार विनियम करते हमारे विचार और संकल्प सुदृढ़ होने लगे । स्वामी विवेकानन्द का रामकृष्ण मिशन, श्री अरविन्द घोष की प्रवृत्ति और रवीन्द्रनाथ का शान्तिनिकेतन इन तीन संस्थाओं का काम देखने को जी चाहा । शान्तिनिकेतन में ही पूज्य गांधीजी से भेंट हुई। मुझे उन्होंने अपने आश्रम में बुलाया और आश्रम के शिक्षण विभाग को विकसित करने का मौका दिया । इतनी तैयारी के साथ गुजरात जैसे कार्य कुशल प्रदेश में राष्ट्रीय शिक्षा संगठित करने की दृष्टि से गुजरात विद्यापीठ का काम मैंने सम्भाला । शान्तिनिकेतन के आखिरी अनुभव के बाद मैंने तय किया था कि जहां काम करूंगा, वहां के स्थानिक लोगों को साथ लेकर उन्हीं को आगे करके काम करने से ही वह काम स्थायी और मजबूत होता है । सन् १६२० के अगस्त के अन्त में अहमदाबाद में चौथी गुजरात राज्य परिषद् ने राष्ट्रीय शिक्षण के बारे में एक प्रस्ताव पास किया था। गुजरात विद्यापीठ का आरम्भ श्री इन्दुलाल यागनिक के आग्रह से हुआ था । श्री किशोरलालभाई, नरहरिभाई और मैं ऐसा मानते थे कि धीरे-धीरे नीचे से काम करते-करते ऊपर तक पहुंचकर शिखर के रूप सारे गुजरात के लिए यथासमय एक विद्यापीठ स्थापित करनी चाहिए। किन्तु अमुकभाई इतने लाख रुपये देने को तैयार हैं, इसलिए विद्यापीठ की स्थापना तुरन्त ही कर दें। ऐसा आग्रह श्री इन्दुलालजी का था । चौथी राजकीय परिषद् में इन्दुलालभाई का प्रस्ताव पास हुआ। हम - आश्रमशाला के कोई भी व्यक्ति उस परिषद् के सदस्य नहीं थे । इसलिए हमारी बात परिषद् के सामने आई ही नहीं । परिषद् ने बारह लोगों की समिति नियुक्त की। केवल विचार करके योजना पेश करने के लिए नहीं, किन्तु योजना तैयार करके उसको कार्यान्वित करने की सत्ता भी उस समिति को दी गई थी। उस समिति में हम दो-तीन आश्रमवाले भी थे । जनता में जब इतना उत्साह हो और परिषद् सर्वानुमति से समिति नियुक्त करे और बारह सदस्यों में आश्रम के भी तीन भाइयों को रखे, तब पीछे हठ करना यह हमारे स्वभाव में नहीं था । किशोरलालभाई और मैं गुजरात-भर में 'और दो-तीन महीनों के अन्दर गुजरात विद्यापीठ की स्थापना की। उसके कॉलेज का प्रारम्भ भी कर दिया । चरोत्तर एजुकेशन सोसायटी, सूरत के कल्याणजी भाई और दयातजीभाई और भावनगर के दक्षिणामूर्ति वाले उसमें शामिल हुए। किन्तु सारे गुजरात में सबसे अधिक प्रतिष्ठावाली लेकिन केवल मैट्रिक के लिए विद्यार्थियों को तैयार करनेवाली अहमदाबाद की प्रापराइटरी हाई स्कूल का क्या ? इतनी बड़ी संस्था, विद्यापीठ में आ जाए तो विद्यापीठ की प्रतिष्ठा बढ़ेगी । मेरे ऊपर चारों ओर से दबाव आया । देश ने असहकार की नीति को स्वीकार किया । उसके अनुसार एक पूरी स्वतंत्र यूनिवर्सिटी स्थापित करने का काम सर्वप्रथम गुजरात ने किया । इसलिए देश के जिन-जिन विद्यार्थियों ने सरकारी शिक्षा के साथ का सम्बन्ध तोड़ा था वे सब गुजरात विद्यापीठ में आने लगे । विशेष तो यह था कि असहयोग करनेवाले विद्यार्थियों की परीक्षा लेकर गुजरात विद्यापीठ की ओर से उनको बी० ए०, एम० ए० इत्यादि उपाधि देने की जिम्मेदारी गुजरात विद्यापीठ पर आ गयी । अब अनेक भाषा के और अनेक प्रदेश के विद्यार्थियों की परीक्षा किस तरह ली जाए अथवा क्या उनकी राष्ट्रसेवा देखकर मानद उपाधि दी जाय, ऐसी चर्चा चली। केवल परीक्षा के लिए ही हमारे पास आए विद्यार्थियों के लिए कुछ करना अनिवार्य था । हमने एक समिति नियुक्त की और उन सब विद्यार्थियों की जांच करके उनको उपाधियां १८४ / समन्वय के साधक
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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