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________________ क्रेटिक, सबसे उत्तम और प्रतिष्ठित मानी जाती थी। मेरा दूसरा आग्रह यह था कि दूर प्रान्त के लोगों को हमें अधिक अपनाना चाहिए। बंग-भंग के आन्दोलन के बाद बंगाल में क्रान्तिकारी हिंसात्मक वृति बढ़ गई, तब महाराष्ट्र के मन में बंगाल के बारे में आदर एकदम बढ़ा। किन्तु हमारे यहां कोई बंगाली थे नहीं। उसी समय पांच-दस सिंधी लड़के फरग्युसन कालेज में आये । कइयों ने पहले से पत्र लिखकर फरग्युसन कालेज में जगह प्राप्त कर ली थी। कालेज में प्रवेश मिलते ही उन्होंने अपनी एक अलग क्लब शुरू की। हमारे लोग सिंधी लोगों की ईर्षा करने लगे, किन्तु उनसे मिलने-जुलने का कोई नाम नहीं लेते । मैंने सोचा, "जिस चीज का मैं उपदेश करता हूं, उसको अमल में लाने की जिम्मेदारी मेरी है।" मैंने अपने आप आगे होकर दो-तीन सिंधी लड़कों का परिचय प्राप्त कर लिया। उनमें मुख्य थेजीवतराम कृपालानी। उनको अपनाने का मैंने पूरा प्रयत्न किया और सफल हआ। फिर देखा कि अन्य सिंधियों के जैसे ये नहीं हैं । उनको अन्त में शंका आई कि मैं गुप्त क्रान्तिकारी राजकारण में अन्दर तक पहुंचा हुआ हूं। मैंने इस बारे में उनको कोई दाद न दी किन्तु बाद में भाई साहब खुद भी क्रान्तिकारी मत के बन गये। आगे चलकर जब वे बिहार मुजफ्फरपुर के प्राइवेट कालेज में प्रोफेसर थे तब स्वामी आनन्द और मैं नेपाल यात्रा जाते मुजफ्फरपुर में कृपालानी के मेहमान होकर रहे । फिर तो हम तीनों नेपाल हो आये। उन्होंने अपने भतीजे गिरधारी को मेरे साथ रहने और पढ़ने के लिए भेज दिया। गिरधारी मेरा बेटा बनकर रहा था। बिहार में कपालानी ने क्रान्तिकारी विचारों का खुब प्रचार किया था। उसी अर्से में मैंने ब्रह्मदेश की यात्रा की तब कृपालानी मेरे साथ थे। पूज्य बापूजी जब हमेशा के लिए भारत आये तब उनके आश्रम के लोग शान्तिनिकेतन रहे थे। उनको मिलने बापूजी शान्तिनिकेतन आये। वहां बापूजी के साथ मेरा गहरा परिचय हुआ। तब मैंने तार करके कृपालानी को बापूजी से मिलने बुलाया। मुलाकात के उन दिनों में कृपालानी भी मेरी तरह बापूजी के हो गये। उस समय का बापूजी और कृपालानीजी का संभाषण मैंने अन्यत्र लिखा है। आगे चलकर बापूजी जब बिहार गये तब कृपालानीजी ने उन्हें अपने यहां ठहराया । परिणामस्वरूप अपनी नौकरी का इस्तीफा देना पड़ा। कपालानी चम्पारण के आन्दोलन में शामिल हुए, जेल गये और पूरे-पूरे बापूजी के बन बये। कपालानी ने देख लिया था कि क्रान्तिकारी काम करने के लिए विद्यार्थियों में जागति लानी चाहिए और उसका प्रारम्भ धार्मिक वातावरण से करेंगे तो समाज की सहानुभूति हमें मिलेगी, इसलिए उन्होंने सिंधहैदराबाद के पास एक ब्रह्मचर्य आश्रम खोला। उस आश्रम का भार मैं उठाऊं, ऐसी उन्होंने इच्छा की। हिमालय की यात्रा और साधना पूरी करके लौट आया था। कृपालानी के साथ का सम्बन्ध था ही इसलिए मैंने स्वीकार कर लिया और हैदराबाद के पास कोटरी नाम के गांव में सिंधु नदी के किनारे उस आश्रम में जाकर रहा । प्लेग के कारण उस आश्रम को वहां से हटाना पड़ा। तब उसे हम सक्कर ले गये। सक्कर शिकारपुर के पास ही है। मैं थोडे महीने सिंध में रहा, उस दरम्यान उस प्रान्त की स्थिति बहुत कुछ समझ सका। बढ़ते कदम : जीवन-यात्रा | १४७ -
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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