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भूतपूर्व विद्यार्थियों की मांग से यहां से दो मील दूर भालेल गांव में बहनों का कन्या विद्यालय सन् १९७२ में विद्यालय की शाखा के रूप में आरंभ किया है।
प्रारंभिक वर्ष में ११ बहनें छात्रावास में थीं । उसमें भी दलित और उच्चजातीय बहनें पढ़ती हैं। अब उसमें १०० लड़कियां पढ़ती हैं। वे सब छात्रावास में रहती हैं । उनको गृह -विद्या की शिक्षा विशेष रूप से दी जाती है । गृह-विद्या में सफाई, रसोई, सिलाई, कताई, गौ-सेवा, बाल - पोषण आदि विषय हैं ।
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खेड़ा, बड़ौदा और भरौंच जिले की कन्याएं पढ़ती हैं। इसका श्रेय आचार्या धनलक्ष्मीबहन को जाता है ।
इस संस्था को सभी राजकीय पक्षों का, सभी जातियों का अनुमोदन प्राप्त है। यहां सभी जातियों और राजकीय पक्षों के भाई-बहनों के बाल-बच्चे साथ में प्रेम से रहकर पढ़ते हैं ।
स्वराज्य मिलने के बाद सरकार ने उद्योग और सामूहिक जीवन की शिक्षा के लिए प्राथमिक शाला के शिक्षकों तथा निरीक्षकों को भेजा। सभी जगह उन्हें सामूहिक जीवन का अनुभव हुआ । उसके बाद शिक्षकों के सम्मेलनों में जातिवार बैठाकर भोजन करने की प्रथा बंद हुई और सब साथ मिलकर सफाई, रसोई आदि काम करने लगे और साथ ही भोजन करने लगे ।
Tarah प्रविद्यार्थी बबलभाई मेहता इस विद्यालय के निर्माण में हमेशा सहायक हुए । पूज्य रविशंकर महाराज की मदद तो है ही ।
इस तरह काकासाहेब इस संस्था की प्रेरणामूर्ति हैं | 0
ज्ञान के अनन्त भण्डार
उमा अग्रवाल
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पूज्य काका साहेब का स्मरण आते ही अनेक सुखद स्मृतियां मस्तिष्क में घूमने लगती हैं । उनमें से चुनाव करना बड़ा ही कठिन है । काकासाहेब ने देश, समाज, संस्कृति, शिक्षा आदि विभिन्न क्षेत्रों में महत्व - पूर्ण योगदान किया है | विपुल साहित्य की रचना की है । उस सबका लेखा-जोखा लेना गागर में सागर भरने के समान होगा ।
मेरा बचपन काकासाहेब के सान्निध्य में बीता है । मुझे याद है कि हम बच्चों की शैतानियों को भी काकासाहेब एक सुन्दर जामा पहना देते थे और हंसी हंसी में ही बहुत-सी बोधप्रद बातों की जानकारी हमें अनायास उनसे मिल जाती थी । उनके ज्ञान का अनन्त भण्डार छोटे-बड़े, स्त्री-पुरुष सबके लिए सदा खुला रहता था। अपनी क्षमता के अनुसार जितना ग्रहण कर सको, उनसे ग्रहण कर लो ।
काकासाहेब का ज्ञान इतना व्यापक है कि देखकर आश्चर्य होता है। आसमान के रंग, ग्रह, नक्षत्र, बादलों के आकार आदि बातें उनसे सहज ही जानी जा सकती थीं। नदी, पर्वत, प्रपात, वन, पृथ्वी के कंकड़पत्थर, संसार के पशु-पक्षी, ऐसी अनेक कीट-पतंग, भुनगे, पक्षियों के नाम, जात, गुण, रूप-रंग, आवाजें, उनकी नकल करना, ऐसी बातें उनसे बड़ी आसानी से सीखी जा सकती थीं । कोयल को चिढ़ाने की दीक्षा तो मुझे काकासाहेब से ही मिली थी । प्रकृति की वृक्ष - बल्लरियों, फूल-पत्तों के गुण-अवगुण सब उनसे जाने जा सकते थे ।
२ / समन्वय के साधक