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________________ भाई शामलभाई बोचासन की दरख्वास्त लेकर गये तो काकासाहेब ने उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया । खेड़ा जिले में उच्च जाति में मुख्यतया पाटीदारों की गिनती थी और बारया तथा पाटनवाडिये सामाजिक रूप से दलित नहीं बल्कि आर्थिक और शैक्षणिक रूप से हरिजनों से भी विशेष दलित थे और उनकी बस्ती भी बहुधा प्रत्येक गांव में थी। कई गांव तो ऐसे थे, जहां कोई भी पाटीदार या उच्चजातीय नहीं था। वहां बढ़ई, लुहार और नाई भी नहीं थे, परन्तु बारैया या पाटनवाडिया ही मुख्यतया थे । काकासाहेब की इच्छा थी कि इन जातियों के बीच कड़ी बन सके, ऐसी संस्था होनी चाहिए, इसलिए बोचासन गांव में श्री नरहरिभाई परीख ( महापात्र) गये और लोगों से मिले। गांव के लोग खुश हुए और ऐसी संस्था के लिए एक बीघा जमीन स्टेशन के पास भेंट में देने का निश्चय किया । संस्था के नामकरण का प्रश्न आया । बारयादि भाइयों ने कहा कि बारैयादि लड़कों को ध्यान में रखकर शिक्षा संस्था का आरंभ करते हैं तो बारया विद्यालय नाम रखना चाहिए। परन्तु साम्प्रदायिक संस्था स्थापित नहीं करनी थी, राष्ट्रीय संस्था बनानी थी, जिससे राष्ट्र का प्रत्येक बच्चा लाभ उठा सके। इसलिए विचार-विमर्श के बाद अन्त में सरदार वल्लभभाई का नाम जोड़ने का तय हुआ, और 'वल्लभ विद्यालय' संस्था का निर्माण हुआ । काकासाहेब की दूसरी यह इच्छा थी कि विद्यालय के मकान सादे हों, गरीब लोग जैसे मकानों में रहते हैं, वैसे मकान बनाये जायें। इस तरह के बांस-मिट्टी के मकान एक महीने में बना दिये और गांधीजी के पवित्र करकमलों से ६-५-३१ के दिन संस्था की बुनियाद डाली और श्री मोरारजीभाई के हाथों १६-६-३१ को उसका उद्घाटन हुआ । शाला के आचार्य के रूप में स्व० श्री कपिलराय मेहता रहे। बाल कालेलकर और भादरण के श्री मणिभाई उनके साथ शामिल हुए । संस्था छः मास चली। छात्रालय में १० विद्यार्थी थे और निटकवर्ती गांवों से अनेक विद्यार्थी पढ़ने आते थे । छ: मास के बाद सन् १९३२ के जनवरी में फिर से लड़ाई शुरू हुई, इसलिए सरकार ने इस विद्यालय को जब्त कर लिया । १९३५ में वापस मिला। मकानों में दीमकों ने कब्जा कर लिया था, और पुलिस ने मकानों के बांस रसोई के काम में ले लिये थे । इससे मकानों की दीवारें खत्म हो गयी थीं । भाई शामलभाई ने फिर से बांस वगैरा इस्तेमाल करके एक महीने में मकानात तैयार कराये और संस्था को फिर से १९३५ के जून की १६ तारीख से शुरू किया। सरदार पटेल ने विद्यालय के आचार्य की जिम्मेदारी मुझे सौंपी। काकासाहेब की इच्छा को ध्यान में रखकर दीमकों से बचाने के लिए चूने की चुनाई से नये मकान तैयार किये । उनके ऊपर देशी खपरैल डालीं। इस प्रकार की व्यवस्था से स्वच्छता, सुघड़ता रक्खी, जिसे aratसाहेब ने पसंद किया । उसके बाद काकासाहेब कई बार विद्यालय में आये, उनके आशीर्वाद हमें मिले, और उनकी जो भावना थी कि उच्चजातीय और दलित जाति की कड़ीरूप वल्लभ विद्यालय बने, उस भावना के साथ आज भी यहां काम जारी है । बापू की नई तालीम की दृष्टि से बालवाड़ी से लगाकर कक्षा १२ तक चलता है । तदुपरांत ग्राम सेवा की दृष्टि से दवाखाना और गोशाला चलते हैं । आते हैं, क्योंकि यहां कृषि विद्या उद्योग के रूप में सिखाई जाती है । का और अध्यापन मंदिर यहां प्रायः किसानों के बच्चे पढ़ने व्यक्तित्व : संस्मरण / ६१
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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