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________________ वीर की देन -x यौवनके प्रस्तर खण्डोंमें निर्झर बन बहना सिखलाया। दानवता को चीर सहृदयता का हमको पाठ पढ़ाया ॥ राजाओंके सिंहासन को जनताका प्रतिनिधि बतलाया । गगनचुम्बिनी ज्वालमालमें जगहित जलना हमें सिखाया॥ सत्य अहिंसा ही जीवन का शिव सुंदर सन्देश सुनाया। दो-विरोध की प्रतिद्वंद्विनी माया को सिकता समझाया ॥ अनेकान्त समदृष्टि हमारी एक ध्येय हो एक हमारा । न्याय बने अन्याय कहीं तो केवल हो प्रतिकार हमारा ॥ मृग ढूढ़े बनमें कस्तूरी तुम तो बनो न यों दीवाने । मानव वह जो मानवता सा रत्न जौहरी बन पहिचाने ॥ तमस्तोम में छिपी चांदनी प्रियतम से दुहराया करती। कहां वीर के पतित पूत रत्नत्रय ? कह अकुलाया करती ॥ तारे क्या हैं उसी चाँदनी की आंखों की मुक्ता माला। अंधकार है धूम्र और आविर्भावक है अन्तर्जाला ॥ जैनमन्दिरों में मुसकाया करती निर्मलता की धारा । निज उपासकों का निवास शिमला पाया वैभव की कारा ॥ कहां धर्म की आन कहां अकलङ्क और निकलङ्क पुजारी। कहां धर्मबन्धुत्व और वह कहां प्रेम के आज भिखारी ।। वैभव बोला करुणा स्वर में मन्दिर मम सोने की कारा पंचभूत में हम विलीन हैं और यही अस्तित्त्व हमारा । स्या० विद्या० काशी]-- -हीरालाल पाण्डे, साहित्याचार्य, बी. ए. पैंसठ
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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