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वर्णी- श्रभिनन्दन ग्रन्थ
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प्राप्त किया। जन्मना वे एक अजैन है किन्तु कर्मणा वे जैनसमाजके आदर्श है। जैनसमा में सचमुच शिक्षाका भारी अभाव है ने उस समाजकी कमजोरीको पहचान कर उसे दूर करने का व्रत ले लिया । फलस्वरूप आज बनारस, कटनी, जबलपुर, दमोह, स.गर आदि अनेक स्थानों में अनेक संस्थाएं चल रही हैं। अजैन होते हुए भी अपनी तपस्या एवं उद्देश्यको पवित्रता के बल पर वे जैनसमाजके आदर्श मनोनीत हुए पूज्य और महान होकर भी वे व्यवहारमें साधारण मानवकी भांति हो रहे सचमुच यह उनकी महानता है ।
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सच कहूं तो आज तक बहुत ही कम मैं किसी धार्मिक विभूतिके प्रति आकर्षित हो सका, किन्तु वर्णीजीके स्वल्प दर्शनने मेरी धारणा में परिवर्तन कर दिया और आज भी मन सोचने लगता है कि धर्म क्षेत्रमें यदि ऐसे ही कुछ और भारतमाता के सपूत पैदा हुए होते तो आज हम भारतीय न जाने उन्नति के किस उच्च शिखर पर पहुंच गये होते । रायपुर ]
चौसठ
- ( पं० ) स्वराज्यप्रसाद त्रिवेदी, बी० ए०, सम्पादक 'महाकोशल'