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________________ वर्णी-अभिनन्दन ग्रन्थ विश्रामसे उसमें २८ मात्राएं होती हैं और अंत में दो गुरू । छंदशास्त्र के अंतर्गत यह छंद सार, नरेन्द्र और ललितपद की श्रेणी में आता है । ईसुरीके गीतोंकी विशेषता यह है कि सीधी सरल भाषा में गीतको मनोहर बना देते थे और प्रथम पंक्ति को द्वितीय पंक्ति का जोरदार समर्थन प्राप्त रहता है जिससे गीत सुनते ही सुनने वालों का ध्यान बरबस उसकी ओर आकर्षित हो जाता है, यथा गोरी कठिन होते हैं कारे, जितने ई रंग वारे । Fara गीतोंकी आलोचना ईसुरीके गीतों की आलोचना करते समय यह आवश्यक है कि प्रत्येक वातारण की ओर हमारा ध्यान रहे । राम और कृष्ण सम्बन्धी गीत उन्होंने जितनी तन्मयता से कहे हैं उससे कहीं अधिक तन्मयता से श्री राधारानी के श्री चरणों में उन्होंने श्रद्धाञ्जलियां अर्पित की हैं। अपनी उपास्यदेवी ब्रजरानी श्री राधिका जी ही को वे मानते थे। यों तो अकाल वर्णन, ऋतु वर्णन, आदि और भी कितने ही विषयोंके उनके गीत हैं किन्तु सर्वोत्तम विषय उनका है 'प्रेम'का | प्रेम कलाका प्रतिरूप है इसलिए प्रेमको अध्ययनका एक अच्छा विषय कह सकते हैं । विद्यापति, सूर तथा अन्य भक्त कवियों के गीतों का भी सूत्रपात प्रेम ही से हुआ यद्यपि उन्होंने प्रेमको ईश्वरत्व के विशाल पथमें परिणत कर अपने अमर गीतों में गाया, तब भी वे प्रेम पर विना खेले न रहे । गोस्वामी तुलसीदासजी भी जो अधिक संयत और गंभीर थे अपनी कविता में प्रेमका रेखाङ्कन किये विना न रह सके । वास्तव में प्रेम ही सबसे प्रबल मनोविकार है और मानव जीवनकी अनेक उलझनों का स्रोत भी । इसी कारण संसार के साहित्य में यह अपना विशेष स्थान रखता है । यह प्रेमही है जो अपढ़ और अज्ञान जनता के मुंहसे गीतोंके रूपमें निकल पड़ता है । ईसुरी तो प्रेम अप्रतिम कलाकार ही थे, उनके गीत प्रेम और जीवन से श्रोत प्रोत हैं। छायावाद की सजनी के बहुत पूर्व उन्होंने रजउ, जैसे मधुर शब्द की कल्पनाकी, उसका व्यवहार किया और रजउ को सम्बोधित करके इतने गीत निर्माण कर डाले कि आज भ्रम सा हो रहा है कि आखिर ये रजउ ईसुरी की कौन थी ? वास्तवमें प्रेमिकाके जो चित्र उन्होंने प्रदर्शित किये हैं वे इतने आकर्षक और स्वाभाविक बन पड़े हैं कि उनकी सूक्ष्मदृष्टि और चतुरताकी प्रशंशा किये विना नहीं रहा जाता । आपके गीतों के कुछ उदाहरण देखिए । उनको पढ़ते और सुनते ही चित्रपटकी भांति दृश्य समाने आ जाता है । सौंदर्य से प्रभावित हो ईसुरी कहते हैं कि इस सुन्दर मुहको देखकर कोई टोटका टौना न कर दे, कहीं किसीकी कुदृष्टि न पड़ जाय, घर और मुहल्ले में तुम हो तो एक खिलौना हो, तुम ही ५६६
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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