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बुन्देली लोक-कवि ईसुरी
कितने ही अधिक व्यक्तियों के लिए कितने ही अंशों में कृत्रिम कविताओंकी बनिस्वत ग्राम-गीत ही अधिक प्रभावोत्पादक और उपयोगी सिद्ध होते हैं।
ग्राम-गीतोंकी व्यापकता
भारतवासियोंका सामाजिक जीवन सर्वथा गीतमय ही है। जन्म होते ही स्त्रियां हिलमिल कर सोहरके गीत गाती हैं, मुण्डनके अवसर पर मुण्डनके गीत । इसी प्रकार जनेऊ के गीत, विवाहगीत, संस्कारों के गीत, बारहमासे, सैर, कजलियों के देवियों के गीत, खेतों के और चक्की पीसने के गीत, गङ्गा यमुना स्नान, तीर्थयात्रा और मेलेके गीत, इत्यादि इत्यादि प्रत्येक अवसरके गीतों द्वारा ग्रामीण जनता अपना मनोरंजन किया करती है। भारतवर्षके प्रत्येक भागमें भिन्न भिन्न रूपसे इन गीतोंका साम्राज्य है। लोक-कवि ईसुरीका वंश-परिचय
बुन्देलखण्डके ग्राम-गीतों का विस्तृत विवरण बुन्देल-वैभवके एक भागविशेष में अलगसे संग्रहीत किया जा रहा है। प्रस्तुत लेख में जिन गीतों की चर्चा की जा रही है वे एक ही लोक-कविके बनाये हुए हैं--उनका शुभ नाम है । ईसुरी आपका जन्म सं० १९८१ वि० में मेड़की नामक ग्राम में, जो कि झांसी प्रान्तांतर्गत मऊरानीपुर से छे मील है, हुआ था। आपके पूर्वज अओरछा निवासी थे किन्तु अठारहवीं शताब्दीमें जिन दिनों ओरछे का व्यवसाय श्रादि गिरगया और राजधानी भी अन्यत्र चली गयी तब वे ओरछा छोड़कर मेड़की चले गये थे, तबसे उनके वंशज वहीं मेड़की में खेती बारी, साहकारी और पण्डिताई करते हैं।
__ ईसुरीके पूर्वज अरजरिया तिवारी जुझौतिया ब्राह्मण थे। मेड़कीमें पं० भोले अरजरियाके सदानन्द उर्फ अधार, रामदीन और ईसुरी ये तीन पुत्र हुए । ईसुरी का पूरा नाम ईसुरीप्रसाद या ईश्वरीप्रसाद था किन्तु उनकी ख्याति उनके उपनाम ही से अधिक है।
ईसुरी अधिक पढ़े लिखे न थे । उनका बचपन लाड़ प्यार ही में व्यतीत हुआ इसके दो कारण थे, एक तो अपने ही घर में सबसे छोटे थे, दूसरे इनके मामाके कोई संतान न थी । अतः अधिकतर इनको अपने मामाके यहां ही रहना पड़ता था। बड़े होने पर जमींदारोंके वे आजीवन कारिन्दा होकर रहे और बड़े ही सम्मान पूर्वक । उनके सम्बन्धका विस्तृत विवरण 'ईसुरी-प्रकाश' में दिया जा रहा है। ईसुरीके गीतोंकी भाषा
ईसुरीके जितने गीत अब तक प्राप्त हुए हैं, वे सब एक ही प्रकारके छंदमें हैं, कहीं कहीं छंदके साथ दोहा भी जोड़ दिया है। जन साधारण उन गीतों को फाग कहते हैं। १६ और १२ मात्राओके
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