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________________ बुन्देलखण्डका स्त्री-समाज इस प्रकार हर मासमें हर सप्ताहमें कभी न कभी वह अपनी यातनाओंको एक ओर रखकर अपनी सखी-सहेलियोंके साथ मिलकर उत्सवके आनन्द मनाती हैं। कभी तुलसीका पूजन तो कभी वटका, कभी रात भर जागरण तो कभी दिन भर उपवास, कभी देवीपूजन तो कभी विष्णुपूजन, वस यों ही उसकी जीवनकी घड़ियों में मुस्कराहट विखरती रहती हैं। आचार व्यवहार धर्मके स्थानपर अन्धविश्वास, रूढ़िवाद, बाह्य आचार और व्यवहारने बुन्देलखंड की नारीसमाज के हृदयमें आसन जमा लिया है । शिक्षाका अभाव, अज्ञान और अपर्यटनने नारीके मस्तिष्कको संकुचित कर दिया है। यहां वहां पर सुन्दर संस्कृतिकी झलक उसके प्राचार व्यवहारमें दृष्टिगोचर होती है, पर गतिहीनता उसका सबसे बड़ा दोष है । राजपरिवारोंकी देखा देखी पर्दाने उच्च वर्गों में, घर बना लिया है जिन्होंने स्वयं मुगल बादशाह, नवाबोंकी नकल कर मध्ययुगमें इसे अपनाया था। इसका प्रभाव नारिॉके स्वास्थ्य पर बुरा अवश्य पड़ रहा है पर अधिकतर श्रमशील होनेके कारण उसका अधिक प्रभाव नहीं हो पाता। पर्दा वैसे भी उतना कठिन नहीं—जैसा संयुक्तप्रान्तके कतिपय हिस्सोंमें है। श्वसुर, जेठसे विशेष पर्दा होती है और उनसे भी; जो श्वसुर या जेठके बराबर वाले हों । हाट बाजार में स्त्रियां आनन्दसे जाती हैं और वस्तु क्रय करती हैं । कम उम्रकी स्त्रियां नाम मात्रकी पर्दा करती हैं। उनका घूघट तो बड़ा होता है पर वह आने जाने, काम करने में और बोलने चालनेमें बाधक नहीं होता। मालिने हाट-बाटमें गजरा बेचती हैं। काछिनें साग भाजीकी गली गली आवाज लगाती हैं। चमारोंकी स्त्रियां अपने परिवारके जनों के साथ मजदूरी करती हैं। बुन्देलखंडकी नारीकी दिनचर्या बुन्देलखंडकी प्रायः सभी स्त्रियां सूर्योदयके पूर्व ही उठकर चक्की पर आटा पीसती हैं । उस समयके गीत बड़े मनोहर होते हैं और उनके श्रमको कम करते हैं । प्रभात की सुन्दर, सुखद समीरके साथ सन-सनकर वह आल्हादमय हो जाते हैं। प्रभात होते होते मक्खियोंके जागनेके पूर्व गायों का दूध दोहन करती हैं । गौशाला को परिमार्जित कर गायों को द्वारके बाहर करती हैं जहांसे घर का बालक उन्हें राउन ( गायोंके एकत्र होनेके स्थान ) तक ले जाता है । और फिर वरेदी ले जाता है गोचारन को । इसके उपरांत घरमें वारा (बुहारू) देकर चौका बर्तन करके वह स्नान करती हैं, कूपसे जल लाती हैं और भोजन बनाती हैं । दफ्तरको, स्कूलको या दूकानको जाने वाले परिवारके लोग दश बजे से बारह बजे तक भोजन करके निवृत्त हो जाते हैं । इसके उपरांत वह नारी स्वयं बची हुई भाजी या मट्ठा, दाल और रोटी का भोजन करती है। परिश्रम उसे इन्ही सीधी सादी वस्तुओंमें सारे विटामिन (पोषक तत्त्व ) दे देता है। दोपहर को वह कुछ अनाज को बीनबान कर साफ करती है, फटकती है या फिर सीकोंके ५४५
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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