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वर्णी-अभिनन्दन ग्रन्थ
की भित्ति है, उसी पर वह अपनी जीवन की इच्छात्रों की प्रतिमा बनाकर अर्पित करती । और सफलता पर इष्ट की पूजा करती है और असफलता पर भी अपने देवताको गाली नहीं देती; न विश्वासमें कमी करती है | यह है बुन्देलखंडकी नारीकी धर्म जिज्ञासा | बुन्देलखंड वैष्णव, शाक्त शिव और जैन मन्दिरों का केन्द्र है । ओरछा के नृपति मधुकरशाहकी पत्नी पुष्य नक्षत्र में चलकर अपने रामको अयोध्या से लायी थी और महारानीके वृद्ध हो जानेसे भगवान् कृपा कर बैठ गये थे जिससे उन्हें सेवामें कष्ट न हो । उनकी गाथा प्रसिद्ध नाभाजी कृत भक्त मालमें है । दतिया में गोविन्दजी और विहारीजी, पन्ना में जुगल किशोरजी. मैहर में शारदा देवी, उन्नाव में बालाजी, छतरपुर में जटा शंकर, प्राचीन मंदिर है । हर राज्य में, हर गांव में मंदिर हैं जहाँ पर नारियां प्रतिदिन विशेष कर उत्सवों पर दर्शनार्थ जाती हैं । कार्तिक मास में बुन्देलखंड की नारी वृजके कृष्ण कन्हैयाकी गोपिका बनकर उसकी पूजा करती हैं फिर महारासमें वह खो जाते हैं तो वह ढूंढ़ती हैं और पुनर्मिलन पर आनन्द मनाती हैं । उन दिनों उषा कालसे स्त्रियोंका समूह मधुर गीतोंके रवसे गली गलीको मुखरित कर देता है ।
होली व्रजके बाद बुन्देलखंड में विशेष उत्सव है । इन दिनों जो गीत गाये जाते हैं उन्हें फा कहते हैं । छतरपुर राज्यके अमर कलाकार "ईसुरी" ने फागें बनाने में कमाल किया है और दतिया में फागों के साथ 'भेद' गायी जाती है यह मिश्रित रागिणी दतियाकी भारतीय संगीतको देन है । उस समय राजाके महल से लेकर गरीबकी कुटिया तक मार्ग में, खेतपर, चौपाल में, हाटमें, नदी-नाले के तीरों पर, सभी जगह वही प्रकृति-प्रिया उत्सवरता बुन्देलखण्डकी नारीकी मधुर ध्वनि सुनायी देती है । कहीं पर नरनारी साथ साथ गाते बजाते हैं पर बुन्देलखण्ड में पर्दा प्रथा अधिक होनेसे यह दलित जातियों तक ही सीमित है। घरों में देवर भाभी से फाग खेलते हैं और बहनोई सालियोंसे । पतिपत्नी मिलकर मधुर प्रेम रागका आस्वादन करते हैं।
कुमारिकाएं नवरात्रिमें नौरताका खेल खेलती हैं--उस समय प्रभात में किशोरियोंके “हिमांचल की कुअर लड़ायती नारे सुटा' से प्रांगण गूंज उठते हैं और वह शिवको प्राप्त करनेकी गौरीके तपका अनुसरण करती है । अन्तिम दिन गौरीकी मृत्तिका मूर्तिका शृंगार युक्त पूजन कर उसे चबैना खिलाती हैं । शरद काल में ही वेरी की कांटोंदार डाली में हर कांटे पर फूल लगाकर जब कुमारिकाएं 'मामुलियईके आगये लिवा कुमक चली मामुलिया' गाती हुई कन्धोंसे कन्धा मिलाये भूमती गाती हुई जाकर सरोवरोंमें उसे सिरानें ( अर्पित करने ) जाती हैं तो मालूम होता है इन्होंने अपने जीवन की साधही कंटकों को पुति बनना निश्चित किया है । अक्षय तृतीयाको एक दूसरेसे स्त्रियां उनके पतियोंका नाम पूछती हैं । और बतलाने में झिझक करने पर चमेलीके वोदर ( टहनी) से प्रतारण करती हैं। श्रावण मासमें हर वधू अपने भाई के बुलाने को आनेकी प्रतीक्षा करती हैं । और मायके ( पीहर ) जाकर झूले झूलती हैं और गीत गाती हैं ।
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