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________________ वर्णी अभिनन्दन ग्रन्थ पंखे या बर्तन बनाती हैं। फटे टूटे कपड़े या कागज की लुगदीके ( Pulp ) के बड़े छोटे बर्तन बनाती है जिन्हें सिकौली कहते हैं । तब वे कुछ विश्राम करती । प्रायः संध्या को बुन्देलखंड में रोटी नहीं बनती। यह बड़ा बुरा रिवाज है । इसका कारण यह हो सकता है कि पुनः रोटी बनाने में दुबारा मसाला लकड़ी व्यय हो, पर जो भी हो, सबेरेको ही रक्खी रोटी, दाल, साग, प्रायः लोग खाते हैं । इसी कारण ब्यालू जल्दी ही कर लेते हैं और गो-धूलि - वेला के उपरान्त खा पीकर फिर निवृत्त हो जाते हैं। मजदूरों की स्त्रियां प्रातः उठते ही रोटी बनाती हैं और संध्याको आकर फिर बनाती हैं। वह कोदों की रोटी और भाजी खाती खिलातीं हैं । बुन्देलखंड में जुवार उरद की दालके साथ रुचिकर मानी जाती जाती है। गेहूं की दतिया, चरखारी, समथर और ओरछा छोड़कर और स्थानों में बड़ी कमी है । ओरछा और विजावर राज्यों में चावल भी बहुत होते हैं। पर वहां की स्त्रियां चावलों का भिन्न भिन्न प्रयोग नहीं जानतीं । चिवड़ा या चूरा जो म० प्रा० में 'खूब बनता है यहां कोई नहीं जानता । स्त्रियां रातमें गपशप करती, गीत गाती और कथा कहानी सुनती सुनाती हैं । दतिया एवं पन्ना में देवालयों में भी काफी संख्या में जाती हैं । वीर बालाएं यह वही भूमि है जहां पर राज परिवारकी तो क्या वारविलासिनी भी मुगल दरबार में भेंट नहीं हुई । एक बार कहा जाता है कि मुगल दरबार में ओरछा नरेश के दरबार की नर्तकी रायप्रवीण के रूप और गुण की प्रशंसा इतनी बढ़ी कि उसकी मांग आयी । राजा सावन्त थे । राज्यकार्य प्रसिद्ध विद्वान केशवदास उसे लेकर गये । उस प्रवीण वारविलासिनीने चुनोती दे दी — 'विनती रायप्रवीण की सुनियो शाह सुजान, भूठी पातर भखत है वारी' वायस स्वान, इसपर चतुर कलाप्रेमी मुगल सम्राटने उसे वापस कर दिया। वीरता तो बुन्देलखंड की स्त्रियों का विशेष गुण है। महारानी लक्ष्मी बाई जिनका नाम भारत के कोने कोने में अब सभी जानते हैं, महाराष्ट्र के रक्त और बुन्देलखंड के पानी से परिपालित थीं। उनकी जीवनी को देखने से पता चलता है कि उनकी परिचारिकाओं में से सुन्दरी स्त्रियां जो बुन्देलखंड की ही वीर बालाएं थीं, उन्होंने ऐसे काम सिखाये कि जिनके सामने कोई भी वीरपुरुष गर्व कर सकते हैं | महारानी झांसी के पूर्व भी राज्यों के विग्रह और युद्धों में, शान्तिकाल में, लुटेरों और वटमारोंके उपद्रवों में अथवा अपने सतीत्व रक्षा के निमित्त बुन्देलखंड की स्त्रियोंने अपूर्व वीरता का परिचय दिया है । यदि पर्दाप्रथा और रुढ़ियां बाधक न हों तो वे अब भी उचित स्थान पाकर अपनी वीरता दिखा सकती हैं । लेखक के एक और लेख में (जो 'मधुरकर' टीकमगढ़ में छपा था ) बुन्देलखण्ड की एक वीरबाला ऐसी हो रानी का चरित्र है जिसने मध्यकाल में अपने पतिके दिल्ली में रहने पर प्रसिद्ध गढ़ सेउढ़ा को अपने देवर से बचाया और उसके धोखेसे ले लेने पर पुनः एक छोटी सी फौज द्वारा उसे जीता और अपने पति की अमानत उन्हें वापस दी। इससे भी वीरतापूर्ण उदाहरण उस लोधिनकी लड़कीका है, जिसकी १ नाई की एक जाति जो राज दरबारमें जूठन उठाते खाते हैं । ५४६
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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