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________________ वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ विद्यालय गया। किन्तु यह जानकर बड़ी निराशा हुई कि वर्णीजी काशी छोड़ कर चले गये हैं । मुझे उनके सामने अपनी कितनी समस्याए रखनी थी । जैनधर्म पर वहांके कुछ अन्य लोगोंसे बात हुई । जानकर बड़ा दुःख हुअा कि भगवान महावीरके श्रादर्शके विरुद्ध जैनसमाजमें भी वर्ण भेद अपनी संकीर्णताओंके साथ आ गया है ! शताद्वियों तक ब्राह्मण-समाजके सम्पर्क में रहनेके कारण जैनसमाज को मौलिक शुद्धता पर प्रभाव पड़ ही गया है । इसी बार सारनाथ गया और बौद्ध-धर्मका अध्ययन करने लगा। ‘पालिके विशेष अध्ययनके लिए लङ्का चला गया। वर्ण-भेदको संकीर्शताओंसे सर्वथा मुक्त बौद्ध-समाजने विशेष रूपसे आकृष्ट किया । फिर तो, बौद्ध दीक्षा और उपसम्पदा भी ले ली। ___ इतने वर्ष पूर्व एक विद्यार्थीसे हुआ वार्तालाप आज वर्णीजीको स्मरण हो या न, किन्तु उसके जीवनकी दशा बदलने में उसका बड़ा हाथ है । काशी विश्वविद्यालय ]---- (भिक्षु) जगदीश काश्यप, एम. ए. 卐 वर्णीजी अादरणीय वर्णीजी उन इने गिने महापुरुषों में से हैं, जिन्होंने अपनी साधना और त्यागसे कुछ ऐसी शक्ति प्राप्त कर ली है कि जो भी उनके सम्पर्कमें आता है, उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता । वर्णीजीने किसी विश्वविद्यालयकी ऊंची उपाधि प्राप्त नहीं की: पर तप और त्यागके क्षेत्रमें वे जिस उच्चासन पर विराजमान हैं, बह बिरलोंको ही मिल पाता है। उनके आदेश पर गतवर्ष जब मैं अहार पहुंचा तो वहीं उनके प्रथम बार दर्शन हुए, पर उनकी आत्मीयताको देख कर मुझे ऐसा लगा, मानों वर्षोंसे उनके साथ मेरा घनिष्ट परिचय रहा हो । वर्णीजी बचपनसे ही अध्ययनशील रहे हैं। मड़ावराकी पाठशालामें छः वर्षकी अवस्थामें बालक गणेशने अध्ययनका जो श्रीगणेश किया वह आज तक जारी है। स्वाध्यायमें जाने कितने ग्रन्थोंका उन्होंने पारायण नहीं किया होगा। विभिन्न धर्मोका उन्होंने तुलनात्मक अध्ययन किया है और एक ऐसी उदार दृष्टि प्राप्त की है, जिसमें किसी के प्रति कोई भेदभाव या विद्वेष नहीं । वर्णीजीकी आकृति और वेशभूषाको देख कर सहज ही भ्रम हो सकता है कि वे अधिक पढ़ेलिखे नहीं हैं। पर उनके सम्पर्कसे, उनके भाषण और शास्त्र प्रवचनसे पता चलता है कि वे कितने गहरे विद्वान हैं । सच यह है कि उनकी विद्वत्ता उन पर हावी नहीं होने पाया है, जैसे कि प्रायः लीगों पर हो जाती है । उनके जीवन में सहजता है और उन्हें यह दिखानेका जैसे अवकाश ही नहीं कि वे चवालीस
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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