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________________ संस्मरण इतने विद्वान हैं। मीठी बुन्देलीमें सीधे-सादे उच्चारणसे जब वे बात करते हैं तो सुननेमें बड़ा आनंद आता है । और बीच-बीचमें अत्यन्त स्वाभाविक ढंगसे 'काए भैया' का प्रयोग करते हैं तो उनकी आत्मीयता एवं आडम्बर हीनतासे श्रोता आभिभूत हो जाता है । साधारण बातचीतमें देखिये, कैसे कैसे कल्याणकारी और शिक्षा-प्रद सूत्र उनके मुखसे निकलते हैं -आदमी जैसा भीतर है, वैसा ही बाहर होना चाहिए । --शिक्षाका ध्येय हृदय और मस्तिष्ककी व्यापकता और विशालता है। --अपनी आत्माको मलिन न होने देना हमारा धर्म है। -जीवनमें सहजता होनी चाहिए। शिक्षाके प्रति वर्णीजीके मनमें अगाध प्रेम है और उनकी हार्दिक आकांक्षा है कि शिक्षाका व्यापक रूपसे प्रचार हो । कोई भी व्यक्ति निरक्षर न रहे । यही कारण है कि उन्होंने अनेक शिक्षालयोंकी स्थापना की है। काशीका स्याद्वाद महाविद्यालय, सागरका गणेश महाविद्यालय, जबलपुरका वर्णी गुरुकुल तथा अनेक छोटे-बड़े विद्यालयोंकी नींव उन्होंने डाली है और उनके संचालनके लिए पर्याप्त साधन जुटाये हैं । पर स्मरण रहे, वर्णीजीका ध्येय वर्तमान शिक्षा प्रणालीके ध्येयसे सर्वथा भिन्न है। आजकी शिक्षा तो आदमीको बहिर्मुखी बनाती है । ऊंची डिगरी पाकर आदमी नौकरी, भौतिक ऐश्वर्य और सांसारिक वैभवकी ओर दौड़ता है और उन्हींके पीछे भटक कर अपनी जीवन-लीला समाप्त कर देता है; पर वर्णीजी उस शिक्षाको कल्याणकारी मानते हैं जो आदमीको अंतर्मुखी बनाती है, जिसमें अपनेको और अपने प्रात्माको पहचानने की शक्ति है और उसके विकासके लिए श्रादमी निरंतर प्रयत्नशील रहता है । अहारमें बातचीतके बीच उन्होंने कहा था, "भैया ! हम तो चाहते हैं कि दुनियाका सुख-दुख आदमीका अपना सुख-दुख बन जाय और आदमी स्वार्थ लिप्त होकर अपना ही लाभ-लाभ न देखे ।" इस एक वाक्यमें शिक्षाका ध्येय अच्छी तरह स्पष्ट हो जाता है। और यह वर्णीजीका कोरा उपदेश ही नहीं है. इसे उन्होंने अपने जीवन में उतारा भी है। मेरा चिरा यह सुन कर गद्गद् हो गया कि अहार आते समय मार्गमें एक जरूरत भरे भाईको उन्होंने अपनी चादर यह कह कर दे दी थी कि मेरा तो इसके बिना भी काम चल जाय गा; लेकिन इस भाईकी जाड़ेसे बचत हो जायगी। चौहत्तर वर्षकी आयुमें वर्णीजीका स्वास्थ्य और उनकी स्फूर्ति किसी भी युवकके लिए स्पृहणीय हो सकती है। उनमें प्रमादका नाम नहीं और उनके गठे और चमकते शरीर, भरी हुई अांखें और उन्नत ललाटको देखकर प्राचीन ऋषियोंका स्मरण हो आता है। वर्णीजीकी सबसे बड़ी विशेषता उनकी सरलता, सात्त्विकता और आत्मीयता है । वे सबसे समान रूपसे मिलते हैं और छोटे बड़ेके बीच भेद करना उनके स्वभावके विपरीत है। अहारसे हम पैंतालीस
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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