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________________ मातृभूमिके चरणों में विन्ध्यप्रदेशका दान अवज्ञा या उपेक्षा का कारण होता है ) । जिस चीज को हम बार-बार देखते हैं, उसका सौन्दर्य हमारी खों से उतर जाता है । यदि विन्ध्यप्रदेश निवासी यहां के प्रकृतिदत्त सौन्दर्यको नष्ट न कर दें - यही नहीं यदि वे उसकी रक्षा तथा वृद्धि के लिए तत्पर हो जायें तो स्वार्थ की दृष्टिसे भी उनका यह कार्य दूरदर्शितापूर्ण होगा । सहस्रों यात्रियों का आगमन उन स्थलोंकी समृद्धि में सहायक होगा । श्रास-पास के जनपदोंके व्यक्ति यहां ग्राकर वन-भ्रमण द्वारा अपने शरीरको स्वस्थ कर सकते हैं, और यहां की नदियों तथा सरोवरोंमें स्नान करके अपने चित्तको प्रसन्न । तैरना सीखने के लिये जैसी सुविधाएं इस प्रदेश में विद्यमान हैं, वैसी अन्यत्र शायद ही मिलें । आश्रम और तपोवन - भारतीय संस्कृति तथा सभ्यताका स्रोत तपोवन ही थे । यह मानी हुई बात है कि हम तपोवनों को प्राचीन परम्परा तथा पूर्व रूपमें ज्यों का त्यों स्थापित नहीं कर सकते । जमाना बदल चुका है और समय का तकाजा है कि हम अपने तपोवनोंको आधुनिक सभ्यता के सात्विक लाभों से वंचित न रक्खें । उदाहरणार्थ हम याधुनिक आश्रमों में रेडियो सेट रखने के पक्षपाती हैं । संसारकी प्रगतिशील धारासे अलग रहने का प्रयत्न करना अव्वल दर्जे की मूर्खता होगी ! साथ ही हमें यह बात न भूलनी चाहिये कि गत युद्ध के बाद समस्त संसार में आधुनिक सभ्यता के प्रति भयंकर प्रतिक्रिया हो रही है और जीवनकी गतिको तीव्रतम तेजीके साथ चलाने वाले तमाम यंत्र तथा साधन आज नहीं तो कल अपनी लोकप्रियता खो बैठेंगे । खूबी इसी में है कि हम लोग अभी से ऐसी संस्थाओं और ऐसे आश्रमोंकी नींव डाल लें, जहां हमारे विद्वान और ज्ञानके पिपासु एकत्रित होकर शान्त वायुमण्डल में अपना कार्य कर सकें । आज बेतवा और केनके सुरम्य तट तथा धसान और जामनेरके जंगल हमें निमंत्रण दे रहे हैं कि हम अपने श्राश्रमोंकी वहां स्थापना करें। उनके निकट बनी हुई झोंपड़ियां कलकत्तेकी चौरंगी स्ट्रीट अथवा बम्बई के मलावार हिलके महलोंसे अधिक सजी होंगी। इस गरीब मुल्क में ईंट तथा चूने और पत्थरका मोह करना हिमाकत है । खुली हवा के स्कूल (Open air school) खोलने के लिए इतने मनोरम स्थल और कहां मिलेंगे ? लोग कहते हैं कि विन्ध्यप्रदेश भारतका स्काटलैण्ड । पर कहना यो चाहिए कि स्काटलैण्ड ब्रिटेनका विन्ध्यप्रदेश है । बुन्देलखण्ड थवा मनुष्यों की — प्रकृतिके शान्तिनिकेतन में हम महिनों तक रहे हैं, पर वहाँका प्राकृतिक सौन्दर्य मध्यप्रदेश के सैकड़ों स्थलोंके सामने नगण्य-सा है। यहां कमी है तो बस कल्पनाशील साथ पुरुषका संयोग कराने वाले मनीषियोंकी। यहां खीरा दस गुना बड़ा होता है, बेर छोटे सेव जैसे और लौकी तिगुनी लम्बीं होती है, बस छोटा होता है तो आदमी ! सदियों तक छोटी-छोटी जागीरों ५१७
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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