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________________ वर्णी अभिनन्दन ग्रन्थ 1 और राज्यों में विभक्त रहने के कारण यहाँके जनसाधारण के व्यक्तित्व क्षुद्र से क्षुद्रतर बनते गये हैं । यदि विन्ध्यप्रदेश इससे पूर्व अलग प्रान्त बन गया होता तो यहां की जनता में क्षुद्रत्वकी वह भावना ( Inferiority complex ) न पाई जाती, जो आज यत्र-तत्र दीख पड़ती हैं। यदि आज भी यहांके निवासियोंको पता लग जाय कि प्रकृति माताके वे कितने कृपापात्र हैं तो कल ही यहां बेतवा तथा केन के तट सांस्कृतिक तीर्थ बन सकते हैं । संस्थाएं तो पहले सजीव व्यक्तियोंकी कल्पना में स्थापित होती हैं, उनका मूर्त रूप तो पीछे दीख पड़ता 1 फलों के बाग -- यहां विन्ध्यप्रदेश में आकर शरीफा ( सीताफल ) के सैकड़ों पेड़ जंगलों में उगे देखकर हमारे आश्चर्य का ठिकाना न रहा । जो फल आगरे में तीन पैसे में एक-एकके हिसाब से मिलता है, उसे यहां पैसे में तीन-तीन को कोई नहीं पूंछता ! नीचां से इस प्रकार लदे हुए वृक्ष हमने अन्यत्र नहीं देखे, और जहां तक बेर, जामुन, इमली, झरबेरी तथा कैथका सवाल है, इस प्रान्तके कुछ भागो में मानो व्यावहारिक साम्यवाद ही आगया ! हमारी ओर बेरियोंकी रखवाली होती है- क्या मजाल कि कोई पांच-सात बेर भी तोड़ ले और यहां कोई उनकी कुछ भी कद्र नहीं करता ! सुना है कि ओरछा राज्यके नदनवाड़े नामक तालाब के नीचेको भूमि इतनी जरखेज है कि वहां फलोंके बीसियों बगीचे बन सकते हैं ! १०-१२ वर्गमीलका वह तालाब दर्शनीय कहा जाता है और हम इस बात के लिए लज्जित हैं कि उसकी यात्रा अभी तक नहीं कर सके। पर इससे क्या, कल्पना में हम वहांके भावी उपवनोंके फलोंका स्वाद चख चुके हैं। और उनकी हजारों टोकरियां संयुक्तप्रान्तके निष्फल जिलींको भेजकर मुनाफ़ा भी उठा चुके हैं ! जताराके केले कलकत्तेके चीनिया केलोंका करीब करीब मुकाबला करते हैं, और कुण्डेश्वर के अमरूद खाने के बाद इलाहाबाद से अमरूद मंगानेका विचार ही हकने छोड़ दिया है । जब लंगड़े ग्राम हमारे ही उपवन में विद्यमान हैं तो श्री सम्पूर्णानन्दजी की काशी से उन्हें मंगानेकी क्या आवश्यकता है? जब स्थानीय नारं गियों में नागपुरका स्वाद आ विराजे तो रेलका महसूल क्यों दिया जाय ? इस भूमिमें सब कुछ विद्यमान है - हां बस कसर है तो इतनी कि "करम हीन नर पावत नाहीं" । प्राचीन ऐतिहासिक सामग्री---- क्या प्राचीन साहित्यकी दृष्टिसे और क्या पुरातत्त्व अथवा मूर्तिकला की दृष्टि से विन्ध्य प्रदेशका दान इतना महत्त्वपूर्ण है कि उसका मुकाबला भारत के बहुत ही कम प्रान्त कर सकेंगे । मढ़खेरा और सांची चंदेरी और देवगढ़, ओरछा और दतिया, हार और सोनागिर जैसे सांस्कृतिक तीर्थं आपको अन्यत्र कहां मिलेंगे ? आज भी सैकड़ों-हजारों प्राचीन हस्तलिखित पोथियां यहां मिल सकती हैं और उनके अन्वेषण ५१८
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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