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मातृभूमि के चरणों में विन्ध्यप्रदेशका दान
श्री पं० बनारसीदास चतुर्वेदी
'स्वाधीन मातृभूमि के चरणों में विन्ध्यप्रदेश क्या भेंट अर्पितकर सकता है ? यह प्रश्न आज हम पाठकों के सामने उपस्थित करते हैं । यह बात तो निश्चित ही है कि भारत के भिन्न-भिन्न भागों की भेंट उन जनपदों की योग्यता, शक्ति, परिस्थिति और साधनों के अनुसार होगी । वैचित्र्य में ही सुन्दरता निवास करती है । प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण हिमालय प्रदेश की सेवाओं का मरुभूमि राजस्थान की सेवाओं से भिन्न होना सर्वथा स्वाभाविक है; पर कौन सेवा छोटी है कौन बड़ी-भेंटों में इस प्रकार का भेद करना सर्वथा अनुचित होगा । मुख्य भेंट किसी मनुष्य का जीवनदान है, और मनुष्य तो प्रत्येक भूमि खण्ड में उत्पन्न होते हैं । यदि बंगाल राजा राममोहनराय तथा कवीन्द्र श्री रवीन्द्र को जन्म दे सकता है तो काठियावाड़ महर्षि दयानन्द और महात्मा गान्धी को । इसलिए हममें से किसी को भी यह अधिकार नहीं कि वह व्यर्थाभिमान द्वारा दूसरे की भेंट की उपेक्षा करे। की भेंट का मूल्य समान है, चाहे वह करोड़पति की हो या मजदूर की, मातृभूमि संवलिया ( सांवरे कृष्ण भगवान् ) की तरह भाव की भूखी है ।
हां, तो प्रश्न यह है कि जननी जन्मभूमि को विन्ध्यप्रदेश क्या भेंट अर्पित करेगा ? इस प्रश्न का यथोचित उत्तर तो इस जनपद के सुयोग्य निवासी ही दे सकते हैं, फिर भी परामर्श के तौर पर दोचार बातें हम भी निवेदन कर देना चाहते हैं ।
स्वास्थ्य सदन --
इस रमणीक भूमिखण्ड में पचासों ऐसे सकते हैं, जिनमें कुछ तो गर्मियों के लिए अधिक होता है, और कहीं-कहीं वर्षा ऋतु की अनोखी छटा जतारा अथवा बरुआसागर, कुण्डेश्वर या सनकुआ के को आशातीत लाभ होगा और वे अपने जीवन के इन स्थलोंका महत्त्व पूर्णतया नहीं समझते।
मां के लिए सभी बच्चों राजा की हो या रङ्क को ।
मनोहर स्थल विद्यमान है, जहां सैनिटोरियम बनाये जा उपयुक्त होंगे, कुछ का सौन्दर्य शीतकाल में प्रस्फुटित दर्शनीय है । यदि रेगिस्तान के रहने वालों को निकट रहनेका सौभाग्य प्राप्त हो, तो उनके स्वास्थ्य पुनर्निमाण में अनेक अंशों तक सफल होंगे । यहाँ कहा भी है 'अति परिचयादवज्ञा' ( अति परिचय
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