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________________ वर्णी अभिनन्दन-ग्रंथ न उसे उसके साथ किसी अन्य चीज की जरूरत थी न शिकार ही नियमित था । ऐसी दशामें उसे कई दिन तक भूखों रहना पड़ता था। कंदमूल,फल ग्रहण करते समय भी वह कोई बहुत तरह के फल या कंद इकडे नहीं करता था, जो जिस जगह मिला, खाया । जब वह पशुपालक हुअा तब उसे दूध भी मिलने लगा और खेती करना सीखने पर भोजन पाने के लिए उसे अपने एंडी-चोटी का पसीना एक करना होता था । उसके इस स्वाभाविक जीवनमें हम यह देख सकते हैं कि उसे अपना भोजन प्राप्त करनेके लिए घोर परिश्रम करना पड़ता था और वह एक बारमें एक ही चीज खाता था । अतः यदि हम अाज स्वस्थ रहना चाहते हैं तो हमें श्रम-शील होना चाहिए और अपना भोजन सादा रखना चाहिए। सादेसे मतलब यह है कि कुदरत जो चीज जैसी पैदा करती है उसी दशामें उसे ग्रहण करें । अन्न ऐसा खाद्य जिसे पचाने की ताकत आज हममें नहीं रह गयी है उन्हें हम पकाकर खांय पर इसका यह मतलब नहीं है कि घी, तेल, चीनी सी दस चीजें इकट्ठी करके उनसे एक चीज बना कर उसे ग्रहण करें। दूध को दूधकी तरह लें, मलाई, घी, रबड़ी बनाकर नहीं। गन्ना जब मिले उसे लें पर उसे चीनीके रूपमें परिवर्तित कर साल भरके लिए जमा न करें। हर ऋतुमें नये खाद्य पाते हैं, ऋतुसे उनका और हमारा संबंध होता है। जो चीज जब पैदा हो तब उसे हम ग्रहण करें । बुद्धिजीवीके लिए श्राज श्रमजीवीका जीवन ग्रहण कर सकना कठिन होगा। पर श्रम तो उसे करना पड़ेगा ही चाहे वह किसी रुपमें करे । वह श्रम उपजाऊ श्रमके रुपमें करे या श्रासन,व्यायाम, टहलना, दौड़ना, आदि के रुपमें करे; पर करे जरूर । न श्रमसे किनाराकशी करके वह कभी स्वस्थ रह सकता है और न आज का बिगड़ा हुआ भोजन कर के। रोगका मूल कृत्रिम जीवन सहज-पुरुष प्रकृतिके प्रांगण में रहता था । न उसने गर्द, गंदगी, धूएँ बदबू से भरे गाँव और शहर बसाये थे, न धूप और हवासे उसे छिपाने और दूर रखनेवाली अट्टालिकाएं ही बनायी थीं । आज शहरके निवासीके लिए नंगे या दिन भर धूपमें रह सकना और दिन भर शुद्ध वायु प्राप्त करना कठिन है। फिर भी स्वस्थ रहने के लिए उसे इनका उपयोग करना आवश्यक है। अतः सबेरे कुछ समय के लिए अपने बदनपर धूप लेकर और शुद्धवायुसे भरे स्थानमें टहलने जाकर इनका आंशिक उपभोग कर सकता है और उसके अनुपातमें अंशतः स्थास्थ्य प्राप्त कर सकता है । और जो खास बात हम पुरुषमें देखते हैं वह थी उसकी निश्चिन्तता और शुद्ध जलका प्रयोग । शुद्ध जलके नामपर आज शहर वालोंको इकट्ठा किया हुआ और साफ किया हुआ नलका पानी मिलता है और बहुतसे लोग तो पेयके नामपर चाय,काफी,लेमन,शर्बत और मदिरा भी पीते हैं,जबकि पेय जल ही है अन्य सब विषमय है। हमें जहाँ तक बन सके शुद्ध जलका उपयोग करना चाहिए। ५००
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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