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स्वास्थ्यके मूल आधार
श्री विट्ठलदास मोदी एक भ्रान्ति
___प्रायः लोगों का ख्याल है कि स्वास्थ्य सौभाग्यसे प्राप्त होता है और रोग दुर्भाग्य की निशानी है: जब कि बात ऐसी कतई नहीं है । न स्वास्थ्य आसमानसे टपक पड़ने वाली चीज है न रोग ही। हम एक साइकिल या मोटरकार खरीदते हैं उसे ठीक दशामें रखने के लिए, उससे ठीक काम लेने के लिए हमें उसके अंग प्रत्यंगसे परिचित होना पड़ता है । हमें जानना पड़ता है कि हमें कब कहां और कितना तेल देना चाहिए और उनका इस्तेमाल कैसे करना चाहिए ताकि अपनी पूरी अवधि तक हमें अच्छी तरह काम दे सकें। शोक है कि शरीर रूपी अमूल्य मशीनके बारेमें हम कभी कुछ जानने की कोशिश नहीं करते उसे न अच्छी तरह चलानेकी ही विधि सीखते हैं । फलतः रोग आते हैं और इसके चलते रहने पर ही साधारणतः लोग इसे स्वास्थ कहते हैं । इससे बढ़िया और पूरा काम नहीं लिया जा सकता।
द:ख तो इस बात का है कि कुछ लोग स्वास्थ्य के ठेकेदार बन गये हैं, उन्होंने डाक्टर, वैद्य और हकीम की संज्ञा ले ली है । वे कहते हैं बीमार पड़ने पर हमारे पास आश्रो, हम तुम्हें रोगसे मुक्त कर देंगे । यद्यपि खुल्लमखुल्ला वे यह घोषित नहीं करते कि 'जैसे चाहो रहो,जो चाहो करो। आहार-विहार के कुछ नियम जाने सुने हों तो उन्हें तोड़ी । इससे होने वाले नुकसान को दूर करने का हम जिम्मा लेते हैं। अन्य व्यापारियों की तरह ये व्यापारी हैं और आज के व्यापारी से दया, धम और ईमानदारी कितनी दर चली गयी है यह बताने की जरूरत नहीं है। फिर भी व्यापार करने वाले स्वास्थ्यके ठेकेदार धनके लोभमें ऐसा न कहें, ऐसा न करें; तो क्या करें ? प्रकृतिकी गोदमें
ऐसी दशामें हमें प्रकृति से पथ-प्रदर्शन प्राप्त करना होगा । जिस प्रकृति-पुरुष का प्रकृतिके साथ सामंजस्य था उसके जीवन का अध्ययन करना होगा । हम उसकी संतान हैं, उसकी आदतोंके अनुसार चल कर ही हम स्वस्थ रह सकते हैं और खोया स्वास्थ्य प्राप्त कर सकते हैं। पाश्चात्य विद्वानोंके मतसे मनुष्य अपने आदि कालमें शिकारपर जीवन बसर करता था। शिकार किया, माँस खाया।
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