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वर्णी अभिनन्दन ग्रन्थ
जयधवलाकी प्रति-
सिद्धान्त मंदिर में जयधवलाकी ताडपत्रीय प्रति एक ही है। उसे बल्लिसेट्टिने लिखकर अर्पण किया था। अंतिम प्रशस्ति में पद्मसेनमुनिको प्रशंसा में कर्नाटक पद्य हैं । उनमें उनको 'जैन सिद्धान्त-वननिधि ताराधिप', 'वाणिवारासि - सैद्धान्तिक चूडारत्न' और 'कुमतकुधर वज्रायुध' इत्यादि उपाधियों से स्मरण किया है ( यह पद्मसेनाचार्य कुलभूषण के गुरु पद्मनंदी ही होंगे ) प्रशस्ति में पद्मसेन के बाद उनके शिष्य कुलभूषण का स्मरण किया है ।
उक्त प्रशस्ति में लेखक बल्लिसेहिको 'वैश्य कुलदीधिति', 'गण्य पुण्यनिधि' और 'शौचगुणांबु निधि, आदि उपाधियोंसे विभूषित किया है। वह इतना उदार था कि स्वार्जित द्रव्यको शास्त्रदान आदि में व्यय करता था । उक्त मुनि पद्मसेन या पद्यनंदि और बल्लिसेट्टीका समय विचारणीय है ।
महाबंध की प्रति-
महाबंध की ताडपत्रीय प्रतिको राजा शांतिसेनकी पत्नी पल्लिकांबाने उदयादित्य से लिखवा कर श्री पंचमी व्रत उद्यापना के समय आचार्य श्री माघनंदिको समर्पित किया था। उक्त ग्रंथकी अंतिम प्रशस्ति में लिखा है कि उपरोक्त माघनंद्याचार्य आचार्य श्री मेघचंद्रके शिष्य थे । उक्त माघनंदि आचार्य, राजा शांतिसेन और मल्लिकांचाका समय विचारणीय है ।
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