SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 494
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाकवि रइधू व्याप्त था। राज्य पट्टसे अलंकृत, विपुल भाल और बलसे सम्पन्न था'। डूंगरसिंहकी पट्ट-महिषी ( पहरानी) का नाम 'चंदादे' था, जो अतिशय रूपवती और पतिव्रता थी। इनके पुत्रका नाम कीर्तिसिंह या 'कित्तिपाल' था जो अपने पिताके समान ही तेजस्वी, गुणज्ञ, बलवान और राजनीतिमें चतुर था जैसा कि 'पडमचरिउ' की "तहिं गरिदुं णामेणराउ....इत्यादि" पंक्तियोंसे प्रकट है। डूगरसिंहने नरवरके किलेपर घेरा डालकर अपना अधिकार कर लिया था। शत्रुलोग इसके प्रताप एवं पराक्रमसे सदा भय खाते थे । वह न्यायी और प्रजावत्सल शासक था । राजा डूंगरसिंह जैनधर्म पर केवल अनुराग ही न रखता था; किन्तु उसपर अपनी आस्था भी रखता था जिसके फलस्वरूप ही उसने किलेमें दिगम्बर जैन मूर्तियोंकी खुदाईके कार्यमें सहस्रों रुपया व्यय किये थे। यद्यपि जैन मूर्तियोंकी खुदाईका यह पवित्र कार्य उसके जीवन में सम्पन्न नहीं हो सका था। विक्रम संवत् १४६७से कीर्तिसिंहके राज्यकाल (वि० सं० १५३६)के कुछ वर्ष पूर्व तक-अथात् वि० सं० १४६७से वि० सं० १५२६ तक-३२ वर्ष जैन मूर्तियोंका निर्माण कार्य हुआ । जिसे उसके प्रिय पुत्र कीर्तिसिंहने पूरा कराया था । डूंगरसिंहके समय अनेक जैन मूर्तियोंका निर्माण वहांके निवासी भव्य श्रावकोंने भी कराया था और जिनके प्रतिष्ठा महोत्सव भी उसीके शासनकालमें बड़े भारी वैभवसे सम्पन्न हुए थे। चौरासी मथुराके जम्बूस्वामीके मन्दिरकी मूलनायक प्रतिमा भी उसीके राज्यकालमें ग्वालियरमें प्रतिष्ठित हुई थी। उनमें से कितनी ही मूर्तियोंको मुगल बादशाह बाबरने बादको खडित करानेका नृशंस एवं घृणित कार्य किया था । अवशिष्ट मूर्तियां आज भी अखंडित मौजूद हैं जो जैनधर्मके अतीत गौरवकी चिरस्मृति हृदयपटपर अंकित करती हैं, ये मूर्तियां कलाकी दृष्टि से अत्यन्त सुन्दर हैं और दर्शकके चित्तको अपनी ओर आकृष्ट करती हुई वीतरागता एवं आत्मिक शान्तिका–जीवनकी विशुद्ध स्वतंत्रतावस्थाका-सच्चा उपदेश देती हैं। डूंगरसिंह सन् १४५४ (वि० सं० १४८१) में ग्वालियरकी गद्दीपर बैठा था, इसके राज्यसमयके दो मूर्तिलेख संवत् १४६७ और १५११के मिले हैं। और संवत् १४८६ की दो लेखक-प्रशस्तियां, एक १-"तहि तोमरकुल सिरि रायहसु.....इत्यादि' पद्य (पार्श्वपुराण)। २-ठाकुर सूर्यवर्माकृत ग्वालियरका इतिहास। . .. ३-गोपाचलदुर्गे तोमरवंशे राजा श्री गणपतिदेवस्तत्पुत्रो महाराजाधिराज श्री डूंगरसिंहराज्ये प्रणमति । -जम्बूस्वामी मंदिर, चौरासी-मथुरा ४-संवत् १४९७ वर्षे वैशाख . . . .७ शुक्ले पुनर्वसुनक्षत्रे श्री गोपाचलदुर्गे महाराजाधिराज राजा श्री डंग (डुगरसिंह राज्य ) संवर्तमानो (ने) का वी (छा) संघे माथुरान्वये . . . . . || "सिद्धि सम्बत् १५१० वर्षे । माघसुदि ८ अष्टम्यां श्री गोपगिरी महाराजाधिराज राजा डुगरेन्द्रदेवराज्य प्रवर्तमाने काष्ठांसवे माथूरान्वये भट्टारक श्री क्षेमकीर्ति . . . . . ॥ जैनशिलालेखसंग्रह भाग २ पृ० ९३ (पूरणचन्द नाहर द्वारा संकलित)
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy