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________________ वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ और श्रावक दान पूजामें निरत रहते थे । देव गुरु,और शास्त्रके श्रद्धानी, विनयी, विचक्षण, गर्वरहित और धर्मानुरक्त मनुष्य रहते थे । और वहां श्रावक जन सप्त व्यसनोंसे रहित द्वादशव्रतोंका अनुष्ठान करते थे, जो सम्यग्दर्शनरूप मणिसे भूषित थे, जिनप्रवचनके नित्य अभ्यासी थे, और द्वारापेक्षण विधिमें सदाही सावधान रहते थे, जिन महिमा अथवा महोत्सव करने में प्रवीण थे और जो जिनसूत्र रूप रसायनके सुननेसे तृप्त तथा चैतन्य गुणस्वरूप पवित्र आत्माका अनुभव करते थे । जहां नारीजन दृढ़शीलसे युक्त थीं और पर पुरुषोंको अपने बांधव समान सझती थीं, कविवर रइधू कहते हैं कि मैं उस नगरकी स्त्रियोंका क्या वर्णन करूं? और जो तीन प्रकारके पात्रोंको दानसे निरन्तर पुष्ट करती थीं। ऊपरके इस संक्षिप्त दिग्दर्शनसे मालूम होता है कि उस समय ग्वालियर जैनपुरी था, जहां अनेक विशाल जिन मूर्तियोंका निर्माण, प्रतिष्ठा. महोत्सव और अनेक ग्रन्थोंका निर्माण किया जाता हो, उसे जैनपुरी बतलाना अनुचित नहीं हैं। कविवर रइधू वहांके नेमिनाथ और वर्द्धमानके जिनमन्दिरोंके पास बने हुए विहार में रहते थे, जो कवित्त रूप रसायन निधिसे रसाल थे-वैराग्य, शान्त और मधुरादि रससे अलंकृत थे जैसाकि उनके निम्नवाक्योंसे प्रकट है एरिस सावहिं विहियमाणु, णेमीसर जिणहरि वड्ढमाणु । णिवसइ जा रइधूकवि गुणालु, सुकवित्त रसायण णिहिं रसालु ।। -सम्मत्त गुण निहाणसमकालीन राजा तैमूरलंगने भारतपर १३६८ ई० में आक्रमण किया था, दिल्ली के शासक महमूदशाहने उसका सामना किया, किन्तु महमूदके परास्त हो जाने पर उस समय दिल्लीमें तीन दिन तक कत्ले आम हुआ और तमाम धन संपत्ति लूटी गयी। तब दिल्ली के तंबर या तोमर वंशी वीरसिंह नामके एक क्षत्रिय सरदारने ग्वालियरपर अधिकार कर लिया, उसके बाद विक्रमकी १६ वीं शतीके अन्ततक ग्वालियर पर इस वंशका शासन रहा है। उनमें से कविवर यश-कीर्तिके समकालीन राजा डूगरसिंह और कीर्तिसिंहका परिचय नीचे दिया जाता है राजा डूगरसिंह-यह तंबर या तोमरवंशका एक प्रधान वीर शासक था, यह राजनीतिमें दस, शत्रुओंका मानमर्दन करनेमें समर्थ और क्षत्रियोचित क्षात्र तेजसे अलंकृत था। इनके पिताका नाम गणेश या गणपति था जो गुणसमूहसे विभूषित था । अन्यायरूपी नागोंके विनाश करनेमें प्रवीण, पंचांग मंत्रशास्त्रमें कुशल तथा असिरूप अग्निसे मिथ्यात्वरूपी वंशका दाहक था और जिसका यश सब दिशाओंमें १ पापुराण प्रशस्ति । २ सम्यक्त्वगुणनिधान प्रशस्ति । ४०६
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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