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________________ महाकवि रइधू कारण कविवरने भट्टारक यशःकीर्तिका निम्न वाक्यों द्वारा परिचय कराते दुए उन्हें भव्यरूपी कमल समूहका उद्बोधन करने वाला पतंग ( सूर्य ) तथा असंग (परिग्रह रहित ) बतलाते हुए उनका जयघोष किया है, और उन्हींके प्रसादसे अपनेको काव्यका प्रकट करनेवाला भी सूचित किया है जैसा कि उसके निम्नवाक्योंसे स्पष्ट है "भव्य कमल-सर-बोह-पयंगो, बंदिवि सिरि जसकित्ति असंगो। तस्स पसाए कव्व पयासमि, चिरभवि विहिउ असुह णिरणासमि ।-सम्मइजिन चरिउ । हससे प्रकट है कि कविवर रइधु भ० यशःकीर्तिको अपना गुरु मानते थे और उनका यथोचित सम्मान भी करते थे। इसके सिवाय, बलहद्दचरिउ (पद्मचरित)की आद्य प्रशस्तिके चतुर्थ कडवकके निम्न वाक्य द्वारा जो उस ग्रन्थके निर्माणमें प्रेरक साहु हरसी द्वारा ग्रंथकर्ता ( कवि रइधू ) के प्रति कहे गये हैं और जिनमें ग्रन्थकर्ताको श्रीपालब्रह्म आचार्यके शिष्य रूपसे सम्बोधित किया गया है । साथ ही, साहू सोढलके निमित्ति 'नेमिपुराण' के रचे जाने और अपने लिए रामचरितके कहनेकी प्रेरणा की गयी है जिससे स्पष्ट मालूम होता है कि ब्रह्मश्रीपाल भी रइधूके गुरु थे, जो उस समय ब्रह्मचारी होते हुए भी 'आचार्य' के उपपदसे विभूषित थे । वे वाक्य इस प्रकार हैं "भो रइधू पंडिय गुणणिहाणु, पोमावइ वर बंसहं पहाणु । सिरिपाल बम्हनायरिय सीस, महु वयणु सुणहि भो बुह गिरीस ॥ सोढल णिमित्त णेमिहु पुराणु, विरयउ उहं कइजड़ विहियमाणु। तं रामचरित्तु वि महु भणेहिं, लक्खण समेउ इय मणि मुणेहिं ॥" ___यह ब्रह्म श्रीपाल पं० रइधूके विद्या गुरु जान पडते हैं। यह भट्टारक यशःकीर्तिके शिष्य थे । सम्मइचरिउकी अन्तिम प्रशस्तिमें मुनि यशाकीर्तिके तीन शिष्योंका उल्लेख किया गया है, खेमचन्द, हरिषेण और ब्रह्मपाल्ह । इनमें उल्लिखित मुनि ब्रह्मपाल्ह ही श्रीपालब्रह्म जान पड़ते हैं। निवास स्थान और उसका ऐतिहासिक परिचय कविवर रइधू ग्वालियरके निवासी थे । ग्वालियर प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थान है । यद्यपि ग्वालियर राज्यके भेलसा ( विदिशा ) उजैन, मंदसौर ( दशपुर) पद्मावती आदि ऐतिहासिक स्थानों में जैन, बौद्ध १ मुणि जसकित्तिहु सिस्स गुणायरु, खेमचंद हरिसेणु तवायरु । मुणि तहं पाल्हवंभुए गंदहु, तिण्णिवि पावहु भारणिकंदहु ।। २ तहोर जिवणीसरु लद्धमाणु, जिणधम्मरसायण तित्तपाणु । सिरि पउमावइ पुरवाड वंसु उद्धरिउ जेण जयलद्धसंसु । -पुण्याश्रवप्रशस्ति । विशेष परिचयके लिए अनेकान्त वर्ष ८ किरण-८-९ में प्रकाशित अतिशयक्षेत्र चन्द्रवाड नामका लेख ।
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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