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________________ वर्णी- अभिनन्दन ग्रन्थ ग्रंथकर्ताके रूपमें उल्लिखित किया गया है । और सिंहसेनने अपनेको हरिसिंहका पुत्र प्रकट किया है । इस प्रतिका परिचय कराते हुए मुख्तार श्री जुगलकिशोरजीने रइधूको सिंहसेनका बड़ा भाई बतलाया था 1 पं० नाथूरामजी प्रेमीने दशलक्षण जयमालाकी प्रस्तावना के टिप्पण में रइधूको सिंहसेनका बड़ा भाई ' माननेकी मुख्तार साहबकी कल्पनाको असंगत ठहराते हुए दोनोंको एक ही व्यक्ति सूचित किया था । परंतु कविवर रइधूकी उपलब्ध रचनाओंके अध्ययन करनेसे दोनों कल्पनाएं संगत प्रतीत नहीं होतीं, क्योंकि रइधूने अपने किसी भी ग्रन्थमें अपना नाम सिंहसेन व्यक्त नहीं किया । और जिस ग्रन्थका ऊपर उल्लेख किया गया है उसका नाम मेघेश्वरचरित है आदिपुराण नहीं, और कताका नाम कवि इधू है सिंह नहीं । उसकी रचना आदिपुराणके अनुसार की गयी है जैसा कि उस ग्रन्थके निम्न पुष्पिका वाक्यसे प्रकट है—“इय मेहेसर चरिए आइपुराणस्स सुत्त अनुसरिए सिरि पंडिय खेमसीहसाहु णामंकिए सिरिपाल चक्कवइ हरणणामं एयादसमो संधिपरिछे समत्तो || संधि ११ ॥ " रहधू विरइए सिरि महाभव्व कविवर रइधूके 'मेघेश्वर चरित' और नजीबाबादकी उस आदिपुराणकी प्रतिका मिलान करने से उस ग्रंथके रचयिता कवि रइधू और ग्रन्थका नाम मेहेसरचरिउ ही है, इसमें कोई सन्देह नहीं है, उसमें साफ तौरपर उसका कर्ता रइधू सूचित किया है फिर मालूम नहीं नजीबाबाद वाली प्रतिमें रचयिताका नाम सिंहसेन आचार्य कैसे लिखा गया ? उसका अन्य किसी प्रतिसे समर्थन नहीं होता, और न रहधूके मेघेश्वरचरितसे उसकी भिन्नता ही प्रकट होती है ऐसी हालत में उक्त दोनों कल्पनाएं संगत प्रतीत नहीं होतीं । रइधू कविके उक्त भाइयों में भी सिंहसेन नामका कोई भी भाई नहीं है जिससे उक्त कल्पनापर विचार किया जा सके । गुरु-परम्परा कविवर रहने मेघेश्वर चरितकी प्रशस्ति में लिखा है कि भट्टारक यशःकीर्तिने मेरे शिर पर हाथ रखकर मुझे संबोधित करते हुए कहा कि तुम मेरे प्रसादसे विचक्षण हो जाओगे । तदनुसार उन्होंने मुझे मंत्र दिया, और मेरे चिर पुण्योदय तथा सुरगुरुके प्रसादसे मुझे कवित्व गुणकी प्राप्ति हो गयी । इसी १ जैनहितेषी भाग १३ अंक ३ । २ दशलक्षण जयमालाकी 'कविका परिचय' नामकी प्रस्तावना । ३ तहु पय-पंकयाइं पणमंतर, जा वह णिवसइ जिण पय भत्तउ । तारिंसिणा सो भणिउ विणोए, हत्थु लिए वि सुमहुत्ते जोएं। धू पंडि सुवण सुहाए, होसि वियक्खणु मज्झु पसाएं इय भणेवि मंतक्खरु दिण्णउ, ते णा राहिउ तंजि अछिण्णउ । चिरपुणे कत्त गुण-सिद्धउ सुगुरु पसाए हुवउ पसिद्धउ । - मेघेश्वर चरित्र प्रशस्ति । ४०२
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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