SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 488
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाकवि रइधू या 'कलकतिया' कहा जाता है और बादमें यही नाम गोत्रादिके रूपमें उल्लिखित किया जाने लगता है, इसी तरह 'पद्मावतिया' भी परवारों का सातवां मूर बन गया हो, कुछ भी हो इस सम्बन्धमें विशेष अनुसन्धानकी जरूरत है। कविवर रइधू गृहस्थ विद्वान थे, और वे देव-शास्त्र-गुरुके भक्त थे। तथा क्षणभंगुर संसारसे विरक्त थे-उदासीन रहते थे; क्योंकि प्रस्तुत कविने अपनेको ‘कविकुलतिलक', 'सुकवि' और 'पंडित' विशेषणोंके अतिरिक्त मुनि या आचार्य जैसा कोई भी विशेषण प्रयुक्त नहीं किया, इससे वे गृहस्थ विद्वान ही जान पड़ते हैं । वे जैनसिद्धान्तके अच्छे विद्वान और गृहस्थोचित देव पूजादि नैमित्तक षट्कर्मोंका पालन करते थे। पुराण तथा साहित्यके विशिष्ट अभ्यासी और रचयिता थे। धार्मिक ग्रन्थोंके अभ्यासके साथ साथ पद्यबदध चरितग्रन्थोंके प्रणयनमें अनुरक्त थे। पुराण और चरित ग्रन्थोंके अतिरिक्त कविवरकी दो रचनाएं सैद्धान्तिक भी समुपलब्ध हैं, जिनमें एक पूर्ण और दूसरी अपूर्ण रूपमें उपलब्ध है। और वे दोनों गाथाबद्ध पद्योंमें रची गयी हैं इन सब ग्रन्थोंके समबलोकनसे कविके सैद्धान्तिक ज्ञानका भी परिचय मिल जाता है । कविवर रइधू प्रतिष्ठाचार्य भी थे, उन्होंने अपने समयमें अनेक जैन मूर्तियोंकी प्रतिष्ठा करायी थी । संवत् १४६७ में इन्होंने भगवान आदिनाथकी एक विशाल मूर्तिकी प्रतिष्ठा ग्वालियरके तत्कालीन तोमरवंशी शासक डूंगरसिंहके राज्य-कालमें करायी थी। कवि रइधू विवाहित थे या अविवाहित, इसका कोई स्पष्ट उल्लेख मेरे देखने में नहीं आया, और न कविने अपनेको कहीं बाल-ब्रह्मचारीके रूपमें ही उल्लेखित किया है ऐसी स्थितिमें उन्हें विवाहित मानना उचित है। कविवरने 'यशोधरचरित' की प्रशस्तिके 'णंदउ रइधू परवारिजुत्त' वाक्य द्वारा अपने कुटुम्बकी मंगल कामना व्यक्त की है और अपनेको परिवार के साथ व्यक्त किया है, किन्तु उन्होंने अपनी सन्तान आदिके सम्बन्धमें कोई उल्लेख नहीं किया । रइधूके दो भाई भी थे जिनका नाम बाहोल और माहणसिंह था, जैसा कि 'बहलद्दचरिउ' (पद्मचरित ) के निम्न धत्तेके अंशसे प्रकट है__"बाहोल माहणसिंह चिरु णंदउ इह रइधू कवितीयउ विधारा।" इस उल्लेखसे स्पष्ट है कि हरिसिंहके तीन पुत्र थे बाहोल, माहणसिंह और कवि रइधू । यहां पर मैं इतना और प्रकट कर देना चाहता हूं कि आदिपुराणकी संवत् १८५१ की लिखी हुई एक प्रति नजीबाबाद जिला विजनौर के शास्त्र भंडारमें है जो बहुत ही अशुद्ध रूपमें लिखी गयी है और जिसकी आदि अन्तकी प्रशस्ति त्रुटित एवं स्खलित रूपमें समुपलब्ध है। उसमें आचार्य सिंहसेनको १ संवत् १४९७ वर्षे वैशाख......७ शुक्र पुनर्नसु नक्षत्रे श्री गोपाचल दुर्गे महाराजाधिराज राजा श्री डुग (डूंगरसिंह राज्य) संवर्तमानी (नो) श्री काञ्ची (काठा ) संधै माथूरान्वये पुष्करण (णे) भट्टारक श्री ग (गु ) णकीर्ति देवस्तत्पट्टे यशःकीर्तिदेव प्रतिष्ठाचार्य श्री पंडित रइधू तेयं ( तेषां ) आ-भाये (म्नाये) अग्रोतशे गोइल गोत्रा (३) साधु' -जेन लेख सं० वा. पूरणचन्द्र नाहर कलकत्ता ४०१
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy